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________________ प्रस्तावना १. युगीन परिस्थितियाँ (क) पृष्ठभूमि-- कवि का व्यक्तित्व और उसके व्यक्तित्व को संवारने वाली युगीन परिस्थितियों का उसके साहित्य के प्रणयन में विशेष महत्व होता है क्योंकि उसकी अन्तश्चेतना उन परिस्थितियों से अनुप्राणित होकर ही सर्जन का कार्य करती हैं। साहित्य स्वयं कोई स्वतन्त्र इकाई नहीं, बल्कि वह तत्तयुगीन विचारों एवं परिस्थितियों का सुपरिणाम होता है। वह एक रचनात्मक प्रक्रिया है, इसलिए उसका सम्बन्ध सामाजिक-जीवन के साथ विशेष रूप से जड़ा रहता है। समाज और साहित्य परस्पर सापेक्ष हैं, अतः साहित्य को समाज का प्रतिबिम्ब भी कहा गया है। सामाजिक सम्बन्धों के कारण कवि अथवा साहित्यकार में एक ऐसी स्फुरणशील चेतना का विकास होता है, जो अन्यान्य विचारों एवं सिद्धान्तों को जन्म देती है। यही चेतना साहित्य और इतिहास की गतिविधि की भी सर्जनकारी तत्व के रूप में मुखरित होती हैं। साहित्य का इतिहास समाज के विकास का भी इतिहास होता है और वह मानव के जीवन-मूल्यों का चित्रण करता है। इस तथ्य से भी सभी सुपरिचित हैं कि हिन्दीसहित्य का जन्म राष्ट्रिय जीवन की सामान्य परिस्थितियों से हुआ और आधुनिककाल का साहित्य भी हमारी राष्ट्रीय जागृति का द्योतक बना। कवि देवीदास का युग भारत की परतन्त्रता का युग था। राष्ट्र एवं समाज एक के बाद एक (मुगलों एवं अंग्रेज़ों की) दोहरी पराधीनता से प्रताड़ित था, जिसके कारण राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक एवं धार्मिक जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा था। ऊपर से सामन्ती-व्यवस्था ने समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर दिया था। राजा और सामन्त विलासिता के पंक में आकण्ठ निमग्न थे। सुरा और सुन्दरी, यही उनके जीवन का लक्ष्य रह गया था। प्रजा भी राजा का अनुसरण कर उन्ही के पद-चिन्हों पर चल रही थी। चारों ओर विलासिता का वातावरण छाया हुआ था। दरबारी कवि राजाश्रित रहकर उनके मनोनुकूल काव्य-रचना करने में अपने को भी धन्य मान रहे थे। “मनमथ नेजा नोंकि सी''१ जैसी घोर शृंगारिक कविता के लिखने का बोलबाला था। फिर भी उस विपरीत वातावरण में कवि देवीदास ने अदम्य उत्साह के साथ अध्यात्म एवं भक्तिरस की जैसी मंदाकिनी प्रवाहित की, १. बिहारी रत्नाकर; पद ६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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