________________
२८०
देवीदास-विलास भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांस जिनवर, सेवकनि सुख देत। भविजन. ।।२।। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
गारि मलयागिर सु चन्दन सीयरौ शुभ गन्ध। लै चढ़ावत ही सुकारन मिटत दुर्गति बन्ध।। भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांसजिनवर सेवकनि सुखदेत।। भविजन. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा।
मालती सुखदास लांजी श्याम जीरौ धान। पाहुनी धान केशरादिक के सुतन्दुल आन।। भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांसजिनवर सेवकनि सुखदेत।। भविजन. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
केतकी मचकुन्द खूजौ केवरौ सु गुलाब। कमलबेल कुसुंभ चंपौ ल्यायकर शुभ भाव।। भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांस जिनवर सेवकनि सुखदेत।। भविजन. ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसजिनचरणाग्रे कामवाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
पूआ बरा पेरा सु पापर, पूरिया पेराख। खोपड़ा खारक सु लेकर, खांड खुरमा पाक।। भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांस जिनवर सेवकनि सुखदेत।। भविजन. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दिपै दीपक अरुण द्युति को हरन तम दुख रूप। लै धरौं परगट जहाँ प्रतिबिम्ब लसत अनूप।। भविजन चलौ पूजन हेत।
ग्यारवें श्रेयांस जिनवर सेवकनि सुखदेत।। भविजन. ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
अगरु कृष्णागरु सु चन्दन आदि सरस सुवास। होम अगनि मंझार होकर कै सु सन्मुख जास।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org