________________
चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा - साहित्य - खण्ड
कुंथुस्वर आदिक साथ असी तिनके गणधार कहे सु जसी । गणधार सु जे प्रति पक्ष दमें, इक लाख कहे सुजिनागम में ।। २० ।। भय लक्ष-सहस असी - अजया, वरनी तिनके त्रस की सुदया।
श्रावक लक्ष उभ करणी, समझो तसु इन श्रावगनी । । २१ । । धरता विध औधसुज्ञान कहे, सत दोय सहस्त्र सु सात लहे । मनपर्ययज्ञान धनी भनजै, पचहत्तर से गिनती गिनजे ।। २२ ।। वर केवलज्ञान भयौ तिनकैं, जिन सात - सहस्त्र कहे गनकें । सय-सात-सहश्र सु पाँच सवै, तिनसौं निशिवासर बाद भवे ।। २३ ।। तहाँ ब्रह्मसुलक्ष धनी सुधिया, तिनके ज्वालामालिनि तिया । पंचमि सुदि कार्तिक मास कही, चढ़ि शैल सम्मेद सु मुक्त लही । । २४ । । सोरठा
जिनवर दीनदयाल, भये वंश इक्ष्वाकु में ।
मन बच तन कर भाल, नमत तिन्हें त्रिजगतपती ।। २५ ।। ॐ ह्री श्रीशीतलनाथजिनचरणाग्रे जयमालायं निर्वपामीति स्वाहा ।
गीतिका विधि पूर्व जो जिनबिम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसौं । अतिपुण्य की तिनकों सुप्रापत होय दीरघ आयु सों । । जाके सुफल कर पुत्र धनधान्यादि देह निरोगता । चक्रेश खग-धरणेन्द्र इन्द्र सु होहि निज सुख भोगता ।। २६ ।।
पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ।
(१२) श्री श्रेयांसनाथ - जिनपूजा (११) दोहा
असिय धनुष उन्नत परम, तन सु सुवर्ण स्वरूप । गैंड़ा अंक श्रेयांसजिन पूजों प्रत सु अनूप । । १ । । ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि । अष्टक (राग रामकली)
लीजिये भरिकें सु फासू परम उज्ज्वल वारि । दीजिये जिन प्रति स आगै सरस शीतल धारि । ।
सु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
२७९
www.jainelibrary.org