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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड २६९ फल उत्कृष्ट धरौं प्रभू अग्र, वासी हौ न हेत शिव अग्र।
जोर जुग हांथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार. ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे मोक्षपदप्राप्ताय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
दरव आदि जल चन्दन अष्ट, हरन हेत भव भ्रामक कष्ट,
जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथाबार.।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे अनर्यपदप्राप्ताय अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजत त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेतु सु आपना।।११।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरंपति कारनै।
अपनौ सु निज परिवार पालन को सु कारज सारनै।।१२।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे पूर्णाध्य निर्वपामीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ बार- श्रीसुपार्श्वनाथाय नमः) जयमाल
दोहा तुरत सुपारसनाथ कों, धर निज ध्यान त्रिकाल। मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा कर जयमाल।।१३।।
चौपाई बनारस नगरी अतिगंगा, नृप सुप्रतिष्ठ तहां अति चंगा। नाम सु पृथ्वी सिंह महारानी, तिन्ह की कुंख माँहि सुखदानी।।१४।। मध्य सु अवेयक तें आये, भादों सुदि छट मंगल गाये। द्वादशी दिन शुभ जेठ महीना, जन्म लियौ विधि जात कहीना।।१५।। बीस-लाख पूरब थिति लीनी, कुँवरावर सब जिन सम कीनी। पूर्व चतुर्दश लाख विवेकी, राज कर्यो श्रीनेत्र न देखी।।१६।। जेठ सुदी वारस तप लीनौं, पूरव लक्ष वरस जुत कीनौ। द्रुम श्रीखण्ड तरै सुखकाजा, दीक्ष्या सहित सहस्त्र सु राजा।।१७।। सोमखेट नगरी का स्वामी, भूप महेन्द्रदत्त तिहि नामी। .. तिन उत्कृष्ट भाव कर दीनौ, जंह गौ-दूध पारनौ लीनौ।।१८।।
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