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________________ २६८ देवीदास-विलास (८) श्री सुपार्श्वनाथ जिनपूजा (७) दोहा लक्षण तिनके साथिया, उचित धनुष शत दोय। हरित वरन पूजों सु प्रति, देव सुपारस सोय।।१।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि। अष्टक (धुनमें) रोग तृषा हमको दुख देत नीर लियौ सु निवारन हेत। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।। बार-बार हम नावत माथ, त्रिभुवन गुरु शिवमारग साथ।।२।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चन्दन धर आगे जिनराज, मोह तपन मेंटन के काज। जोर जुग हाथ पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत ले निज माफिक शक्ति, अक्षय पद कारन सुन भक्ति। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्ताय अक्षतम् निर्वपामति स्वाहा। आयौ ले कर उज्ज्वल फूल, हेत मदन-शर नाशन मूल। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे कामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। धर नैवेद्य निरख निर्दुख, कारण दोष निवारण भूख। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। दीपक ज्योति लिये लहलात, नाशन हेत तिमिर मिथ्यात। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार.।।७।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। यह कारण हम खेवत धूप, कर्म दहै पद होहि अनूप। जोर जुग हाथ, पूजौं चरण सुपारसनाथ।।बार. ।।८।। ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपमीति स्वाहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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