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देवीदास-विलास
प्रजालिये सुदीप कंज अंधकार हानके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानिके।।सुहाथ ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सु आग मांहि खेवहूँ विचार धूप आनके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानिके।।सुहाथ. ।।८।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
लवंग लायची सु आदि ले सुहर्ष हानिके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानके।।सुहाथ. ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुनीर आदि अष्ट दर्व जे कुभाव मानके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानके।।सुहाथ. ।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे अन_पदप्राप्तये अय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका हम निरख जिनप्रतिविम्ब पूज त्रिविध कर गुण थापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनै।
अपनौ सु निज परिवार पालन कौं सु कारज सारनै।।११।। . ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ बार - श्रीपद्मप्रभुजिनेन्द्राय नमः) जयमाल
दोहा सो पद्मप्रभु भक्ति विन, जग का कट न जाल। मति माफिक तिनकी कहौं, भाषा कर जयमाल।।१२।।
. चौपाई कौशाबी नगरी अति सोहै, तिहि देखत नर सुरपति मोहै । धारनाक्ष नस्पति तहँ ज्ञानी, तिहि के नाम सुसीमा रानी।।१३।। तिहिं के गर्भ विर्षे सु रहाये ऊपर अवेयक तें आये। कृष्णपक्ष छट माघ महीना, बीतत मास जनम जब लीना।।१४।।
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