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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड
गीतिका विधि पूर्व जो जिनविम्ब पूजत द्रव्य अरु पुन भावसों। अति पुण्य की प्रापत सु तिहिकौं होहि दीरघ आयु सों।। जाके सुफल कर पुत्र धन धान्यादि देह-निरोगता।
चक्रेश-खग-धरणेन्द्र-इन्द्र सु होहि निज सुख भोगता।।२७।। (७) श्री पद्मप्रभु-जिनपूजा (६)
दोहा धनुष अढ़ाई सै उचित, विद्रुम वरण शरीर।
पद्म अंक अवलोकिये, पद्मप्रभ प्रतवीर।।१।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनेन्द्रचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि।
नाराच छन्द सुनीर कूप-वापिकादिको प्रसांग छानिकै सुल्याइये अपारपुण्य को सुहेत जानिकै। सुहाथ जोरिके उभै विषै सुधारि माथके
सो पूजिये त्रिकाल पाद-पद्म पद्मनाथ के ।।२।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे जन्ममृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
महाद्रुमेस गार सीयरौ सुगन्ध मानके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानिके। सुहाथ. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय सुगन्धम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुअक्षतं विशुद्ध जे विर्षे समस्त धान के।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानिके।।सुहाथ. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुफूल केतकी सु आदि ले सुहर्ष ठानिके।
सुल्याइये अपार पुण्य को सुहेत जानिके।।सुहाथ. ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे कामबाणविध्वंशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
सु भोजनादि अन्न घीऊ शर्करादि सानके
सुल्याइये अपार पुण्य कौ सुहेत जानिके।।सुहाथ.।।६।। ॐ ही श्रीपद्मप्रभुजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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