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देवीदास-विलास वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सुपूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।३।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथ जिनचरणाग्रे संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
तन्दुल अति चोखे अमल अदोखे जलकर पोखे विमल छरे। कोमल सब साजे अति छवि छाजे यह विधि ताजे ले सुथरै।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सुपूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।४।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा।
तिन पहुपन छायी परमलतायी अति सुखदायी दृगनासा। तिनकी वरमाला परमविसाला ले जिन आलय तज आसा।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।५।। ॐ ह्रीं अजितनाथजिनचरणाग्रे कामवाणविध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
नेवज वर नीको तुरत सुधी को पुरस विधी कौ हरण क्षुधा। पाँचों वर मेवा बहुविध जेवा कारण सेवा सुक्त सुधा। .
वसु करमन दाहत ते सुखसाहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजो नर सुर हूजौ गतिभारी।।६।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
वर धूप दशांगी परमलचांगी अगनि सुरंगी कर दाहै। जगमांहि सुखीते विघन वितीते निजमन चीते फल पाहै।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।७।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बादाम सुपारी लोंग लचारी श्रीफल भारी ऋतुहित के।
लोचन दृग नासा करन हुलासा लै अतिखासा ऋतु-ऋतु के।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजो नर सुर हूजौ गतिभारी।।८।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। १. मूलप्रति में "उधा"।
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