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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड २५१ वरनी सु अर्जिका लक्ष हूठ नव सहस अवधिज्ञानी न झूठ। वैक्रियक ऋद्धि वारे सु दौर छहसै पुन बीस हजार और।।२१।। वादी अरु मनपर्यय सुसार पौने तेरह-तेरह हजार। पुन बीस सहस केवल सुज्ञान तिनके गुन पुन जिनवर समान।।२२।। इक्ष्वाकुवंश महि गुण गरिष्ठ उपजे परमेश्वर परम इष्ठ। बदि माघ चतुर्दशमी अदोष अष्टापद चढ़ पहुँचे सुमोख।।२३।।
. सोरठा तिनके गुन को पार गन-फनपति पावे नहीं।
मैं यह कियौ विचार पढ़त सुनत सुख ऊपजे।।२४।। ॐ हीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका विधि पूर्व जो जिन बिम्ब पूजै द्रव्य अरू पुन भावसों। अति पुन्य की तिनकों सु प्रापत होहि दीरघ आयु सों।। जाके सुफल कर पुत्र धन-धान्यादि देह निरोगता।
चक्रेश-खग-धरणेन्द्र-इन्द्र सु होहि निज सुख भोगता।।२५।। (३) श्री अजितनाथ जिनपूजा (२)
दोहा गज लक्षण पुनि धनुष सै साढ़े चार उतंग सो प्रति अजित जिनेश की, कंचन वरण सु अंग।।१।। . . ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे पुष्पांजलिं क्षिपामि।
त्रिभंगी छन्द उज्ज्वल सुखदानी प्रासुक पानी गुरू उर ज्ञानीसम सियरो। ले सन्मुख आयौ जिनगुण गायौ तन हरषायौ पुन हियरौ।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।२।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथर्जिनचरणाग्रे जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
अति सुरस सुवासी केशर खासी परम हुलासी कर गारौं। मलयागिर बावन चन्दन पावन निरमल भावन धरि वारौं।
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