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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड जल चन्दन चांवर पहुप सुथावर भ्रमर सु भाँवर दे तिनहे। चरु दीपक धूपं फल सु अनूपं लै भवकूपं अष्टक लै।। वसु करमन दाहत ते सुख साहत जो तुम चाहत शिवनारी।
प्रभु अजित सु पूजौ जिनवर दूजौ नर सुर हूजौ गतिभारी।।९।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
गीतिका हम निरख जिन प्रतिबिम्ब पूजौं त्रिविध कर गुण धापना। तिनके न कारज काज निज कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाहि नरपति कारनै।
अपनी सु निज परिवार पालन को सु कारज सारनै।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनचरणाग्रे पूर्णाय॑म् निर्वपामीति स्वाहा।
(जाप्य १०८ बार - ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथाय नम:) जयमाल
दोहा
अजित जिनेश्वर दूसरे, गुण संयुक्त विसाल। मति माफिक तिनकी कहौं भाषा तिन जयमाल।।११।।
पद्धरी आनत तज विजय विमान नाम, जितशत्रु नृपति तिनके सुधाम। . विजयादेवी तसु कूख माँहि. तित पटतर और त्रिया सु नाँहि।।१२।। वदि जैठ अमा रोहिणि नक्षत्र, साकेत नाम नगरी विचित्र। जन्मन सुदि माहु दशें प्रवीन, वर रोहिणी नाम नक्षत्र लीन।।१३।। पूरब सु बहत्तर लक्ष आयु, कुँवरावर चौथे भाग जायु। पूरब सु लक्ष त्रेपन सुराज, भुगतौ फिर करमन को इलाज।।१४।। तप कीनौ पूरब लक्ष एक, दिन माघ सुदि नवमी सुटेक। दीक्षा लीनी धर शीश हाथ, राजा तिनके सु सहस्र साथ।।१५।। नीचे सु सप्तछद नाम वृक्ष, बरनौ विधि भोजन की ततच्छ। गोदूध अजुध्या महि सु लीन, गृह नरदत्त राजा प्रवीन।।१६।। छदमस्त रहे द्वादश सु वर्ष पुनि केवलज्ञान भयौ सुहर्ष। चातुरदशमी सुदि पौष मास अपराहनीक वेरा प्रभास।।१७।।
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