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देवीदास-विलास
जय जय'कुंथु कुगति-गृह आगर जय जय अरहनाथ सुखसागर जय जय मल्लि करम-द्रुमहाथी जय जय मुनिसुव्रत शिवसाथी।।१६।। जय जय नमि भगवत मल भंजन जय जय नेमिनाथ भवभंजन जय जय पार्श्वनाथ परमेश्वर जय जय वर्द्धमान ज्ञानेश्वर।।१७।।
सोरठा आदि अन्त चौवीस तीर्थकर गुणमालिका।
वरनी कर धर शीस तिनके भक्तिप्रसादतें।।१८।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु जयमालाघु निर्वपामीति स्वाहा। (२) श्री आदिनाथ-जिनपूजा (१)
दोहा उन्नत धनुष पांचसै, कंचन वरण शरीर।
वृषभ चिह्न लखि पूजिये, आदिनाथ गुण-वीर।।१।। ॐ हीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे पुष्पांजलि क्षिपामि।
अरिल्ल छन्द शीतल विमल गहीर समुद्र सु क्षीर को भरि थारी महि धार कटोरा नीर को। कारण दुःख सु जन्म जरा मृत हानि के
जासों पजौं चरण प्रथम भगवान के ।।२।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे जन्मजरामृत्युविनाशाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिर चन्दन घिसकें जलसों हलौं परम सुगन्ध महा जामें केशर मिल्यौ। सन्मुख होय सु हरष हेत निज ज्ञान के
जासौ पूजौ चरण प्रथम भगवान के ।।३।। ॐहीं श्री आदिनाथजिनचरणाने संसारतापविनाशाय चन्दनं निर्वपामिति स्वाहा।
परम सुगन्ध अखण्डित तन्दुल शालिके धवल वरन सम चन्द सुपेत सुहाल के। थारी लेकर हेत स्व-पर पहिचान के जासों पूजी चरण प्रथम भगवान के ।।४।। ही श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
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