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चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड पूजौं कमल सुबेल चमेली केतकी जासु विर्षे वरवसत वास अति हेतकी। कारण हेत विनाशन विरह सु वानके
जासों पूजौं चरण प्रथम भगवान के।।५।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
नाना रस विधि सहित व्यंजन खरे घृत पकवर पकवान आदि मेवा धरे। दूर करन के हेत क्षुधा-दुख दान के
जासों पूजौं चरण प्रथम भगवान के।।६।। ॐ हीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे क्षुधारोगविनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
निर्मल जासु प्रकाश धूम वाती विना दीपक ज्ञान स्वरूप मोह कीनौ निना ल्यायौ मेटनकौं सु तिमिर अज्ञान के
जासौं पूजौं चरण प्रथम भगवान के।।७।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ले दशांग वर धूप अग्नि महँ खेवहूँ दो कर जोरि वचन मन देकर सेवहूँ। जारन हेत करम वन अरि दुर्ध्यान के
जासों पूजौं चरण प्रथम भगवान के ।।८।। ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनचरणाग्रे अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल अर बादाम सुपारी लीजिये फल इन आदि उतार अग्र धर दीजिये। कीजे भक्ति सुकाज प्रगट निर्वान के
जासों पूजौं चरण प्रथम भगवान के।।९।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीर विमल चन्दन चांवर अर फूल लै नेवज दीप सधप सरस फल थूल लै। यह विधि अरघ संजोय सकृत फल ठान के
जासों पूजों चरण प्रथम भगवान के।।१०।। ॐ हीं श्रीआदिनाथजिनचरणाग्रे अनर्षपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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