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________________ अतिशय (आश्चर्य) वर्णन-खण्ड २४३ निरउपसर्ग दसा घनी केवलज्ञान अपार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।५।। ॐ हीं उपसर्गरहित अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। चतुरानन भास्यो महा सोभित दिसा सुचार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवरसार।।६।। ऊँ ह्रीं चतुर्मुखसहित अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। प्रगट सु ईश्वरता विौं विद्या सकल अपार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।७।। ॐ ह्रीं सर्वजगतईश्वरतागुणअतिशयमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। परमौदारिक तन विमल छाया कौ न आकार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।८।। ॐ ह्रीं छाया रहित अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। प्रमाणीक सोभा सहित बढ़े नई नख वार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।९।। ऊँ ह्रीं नखकेशरहित अतिशय गुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।। निद्रा कर्म गयौ विनसि पल सों पल न लगाय। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।१०।। ॐ ह्रीं नेत्रों से पलरहित अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। सोरठा केवलज्ञान उद्योत भय भए अतिसय सु दस। वरनन कैसे होत सो हमसे मति मन्द पर।।११।। ॐ ह्रीं केवलज्ञानकृत दसअतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।। (३) देवकृत चौदह अतिशय __दोहा सर्व अर्थमय मागधी ध्वनि संशय हरतार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।१।। ऊँ ह्रीं सकल अरधमागधी भाषा अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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