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________________ २४४ देवीदास-विलास सर्व जगत जीवनविषै मैत्री भाव उदार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।२।। ऊँ ह्रीं जीवन विषै मैत्री भाव अतिशय गुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। संपूरण रितु के जहां फूल सुफल द्रुम डार। लै जलादि पूजौं सुगुण मंडित जिनवर सार।।३।। ॐ ह्रीं सर्वऋतु के फल-फूल अतिशयगुण मंडित श्री वृषमादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। दर्पण सम सु दिपै धरा मणिमय परम सुढार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।४।। ॐ ह्रीं आदर्श भूम्यातिशय गुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। उपजत परमानंद अति सब जीवन हितकार। लै जलादि पूजों सुगुण मण्डित जिनवर सार।।५।। ऊँ ह्रीं सकल जन आनन्द उत्पादक अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। वायु वृष्टि उछित महा परिमलता पुनि सार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।६।। ऊँ ह्रीं अनुकूल मारुत अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु, अर्घ्यम्। भूमि सोधने को चलै मारुत पुनि अधिकार। . लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।७।। ऊँ ह्रीं योजनान्तरतृण कण्टक रज उपलभूभाग उपसमत सुगंध वायु अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। गन्धोदक वर्षा बही जहाँ पुनि मेघ कुमार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।८।। ॐ ह्रीं मेघकुमारदेवकृत गन्धोदकवृष्टिदेवकृतातिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।। चरण कमल तरु छिपन तसु हेम कमल असरारि। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।९।। ॐहीं हेमकमल ऊपर संचरण अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् सकल नाज संयुक्त कृषि सोभित महा सुढार। लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।१०।। ॐही फलभारणनिमित्तसमस्तधान्यआतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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