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देवीदास-विलास
आठ अधिक इक सौ कहे लक्षण स्वगुण सरीश।
लै जलादि पूजौ सु जिन वर्तमान चौबीस।।८।। ॐ हीं सुलक्षण अतिशय गुण मण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाह.
बोलत हित-मित-प्रिय वचन जामें राग न रोस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।९।। ॐ ह्रीं हितमिप्रियवचन अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
बल बेमरजादी कहै देह विर्षे तिन कीस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।१०।। ॐ ही अमितबलगुण अतिशयमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
सोरठा दस अतिसय जिनराज जन्मत के परगट कहे।
पढ़त सुनत शुभ काज जिनवर पूजा के सदा।।११।। ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु पूर्णाय॑म् निर्वपामिति स्वाहा। (२) केवलज्ञान के दस अतिशय
दोहा होहि नहीं दुर्भिक्ष जहाँ गुण जोजन सम चार।
लै जलादि पूजौं सु जिन मण्डित जिनवर सार।।१।। ॐ ह्रीं चारसौ योजन सुभिक्ष अतिसयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम। , गमन सहज आकाश में कर सुघातिया छार।
लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।२।। ॐ ह्रीं आकाशगमनअतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।
काहू जीवन को जहां कोऊ घात न होय।
लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।३।। ॐ ह्रीं प्राणिघातनिवारण अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।
परमदेव परमात्मा रहित सर्व आहार।
लै जलादि पूजौं सुगुण मण्डित जिनवर सार।।४।। ॐ ह्रीं सर्वआहाररहित अतिशयगुण मण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्।
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