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७. अतिशय (आश्चर्य) वर्णन-खण्ड
(१) जिनवर-जन्म के दस अतिशय
दोहा सदा स्वेद वर्जित सु वपु तीन भुवनपति ईस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।१।। ॐ ह्रीं स्वेद रहित-गुण मण्डित श्री वृषभादि वीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
महादेव सब मल रहित जगनायक जगदीश।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।२।। ॐ ह्रीं मलरहित-गुण प्राप्त श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
क्षीरवर्ण तिनको रुधिर हाथ जोर जुग सीस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।३।। ऊँ ह्रीं क्षीरवर्णरुधिर गुण प्राप्त श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
वर संस्थान सु समचतुर हन्ता कर्म हरीस।
लै जलादि पूजौं सुजिन वर्तमान चौबीस।।४।। ऊँ ह्रीं समचतुरस्त्रसंस्थानगुणप्राप्तश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
वज्रवृषभ नाराच है वर संहनन सुधीश।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।५।। ॐ ह्रीं क्वृषभनाराचसंहनन अतिशय गुण मण्डित श्री वृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्ध्वम् स्वाहा.
कामदेव सूरज छपत कोटि सु तन छवि दीस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।६।। ॐ ह्रीं शोभनीकस्वरूप अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्त चरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
चले सहज सुगन्धता तन विर्षे जु धरमीस।
लै जलादि पूजौं सु जिन वर्तमान चौबीस।।७।। ॐ हीं परमसुगन्धित अतिशयगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् स्वाहा.
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