SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० देवीदास-विलास पर पद के रस रंग मैं भव कानन मांही दुरमति उर अवधार।। भूल्यो. विसरयौ सरवसु चेतना भवकानन मांही रहित विभाव विकार।। भूल्योः ।।४।। परम सुपद परच्यौ नहीं भव कानन मांही समदरसन बिनु आदि।। भूल्यौ। जप-तप सब संजिम गयो भव कानन मांही वार अनंतीवादि।।भूल्यौ.।।५।। सम्यकग्यान बिना जिया भवकानन मांही दीनौं सुपद विसारि। भूल्यौ. भेदा भेदि न करि सक्यौ भव कानन मांही भिन्न-भिन्न निरधारि।।भूल्यौ.।।६।। संसय सहित विमोह मैं भवकानन मांही विभ्रम जुत बल तीन। भूल्यौ. भ्रष्ट भयो पद आपनौ भवकानन मांही सम्यकज्ञान विहीन।।भूल्यौं ।।७।। छांडि परमपद आपनौं भवकानन मांही पंचकरन रस राचि।भूल्यौ. टुक सुख स्वारथ को फंसे भवकानन मांही भवगति गति दुख नाचि।।भूल्यौ ।।८।। रागदोष परनति रही भवकानन मांही रचना त्रिविधि विचित्र।भूल्यौ ।। को कवि वरनि सकै विथा भवकानन मांही भटक्यौ बिनु चारित्र।।भूल्यौ ।।९।। एकु लखें इकु जानि है भवकानन मांही एक विर्षे विश्राम।।भूल्यौ।। विमल पंथ जब पगु धरै भवकानन मांही पावै शिवपुर ठाम।।भूल्यौ.।।१०।। जीवपदारथ की दसा भवकानन मांही सुनि भवि हेत उदास।भूल्यौ।। सो निहचै पद पाव ही भवकानन मांही अजर अमर देवीदास।।भूल्यो.।। आतमा भवकानन मांही कर्म उदै मिथ्यात।।भूल्यौ.१०।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy