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सम्बोध-प्रबोध-साहित्य-खण्ड
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जव अरिहंत देव पहिचानै निज गुर ग्रंथ समूझै। जव तिन्हि के परसाद आपहू हेय उपादे सूझै।। जो जिय जिनवर के सुद्रव्य गुन परजाय न जानैं। जो पुनि आप स्वरूप आपनौं नहीं आपु पहिचान।७। जब मुहजूद होहि मत परगट सुद्ध आतमा ध्यावै। अपनै गुन अरिहंत देव के लखि-लखि लीकल गावै।। आतम तत्व और पुदगल जब जुदा-जुदा करि लेखै। आप स्वरूप आपनै दिल मै अलष अमरति देखै।८। जाते करने को सुजोग्य है सब्दव्रम्ह की सेवा। जाके अवधारै सु होत भवि सवै पदारथ ग्येवा।। सबै पदारथ का स्वरूप है सब्दवृम्हके मांही। वय उतपत्य ध्रौव्य ए तीन्हौ बिना पदारथ नांही।९। द्रव्य अवरगुन परजाइनि को भेद सब्द करि कीन्हौ। उलखे सब्द बृम्ह के सेवक भलीभांति गुन तीन्हौं।। इहि परकारक कष्ट बिनु भाई परम ठिकाना लैनौ। अपनौ निजु सम्हारि गुन पौरिषु कर्मनि को रिनु दैनौं।१०। जे आसान भव्य जन सुनि करि यही नजरि मैं दीजौ। एही एक मोख को मारगु ग्रंथनि मैं लखि लीजौ।। यह विचार सौ राग दोष अरू मोह परिनमन डारौ।
देवियदास कहत रे भाई कर्म फंदा निरवारौ।।११।। (२) स्वजोग-राछरौकर्म उदे मिथ्यात्व भूल्यौ आत्मा भव-कानन मांही। ज्यौं जु रमैं पय सरकरा भव-कानन माही।। त्यौं न रुचै जिनधर्म भूल्यौ आत्मा भव-कानन माही।।भूल्यौ.।। १. विमुख भयो निज धर्म तैं भव कानन मांही।। बाँधे मुच इन कर्म भूल्यौ आत्मा भव कानन मांही।।२।।। दरसन ज्ञान चरणमई भव कानन मांही पुदगल के गुन हीन।।भूल्यौ. सम्यक दरसन दृग बिना भव कानन मांही स्वपर विवेख अलीन।।भूल्यौ।।३।।
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