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________________ १९५ पुराणेतिहास-साहित्य-खण्ड असिय हजार वरष तह दुख करि पूरियो। निबूं तरवर तुरत जाइ अंकूरियो।। बीस हजार वरष निंबू परनति रही। निंबू तजि परजाइ केवरे की गही।। गहि केवरौ परजाइ थावर गति जहाँ संकट सयौ। दस सहस घटि एक लाख वरष दुखित दुर परनति रह्यौ।। फिरि आव अंत भो स पनि उपजे कनक तरवर विपैं। तह पांच कोडि निदान वरपनि दुख सहे लेखें लिखें।।१४।। तीस लाख वरषनि चंदन द्रुम मैं बसे। छिनक घान सुखमानि महादुखमैं फंसे।। तीस कोडि वरषनि सुधरे तन मच्छ को। सौ दुख कौनु कहै सुविौं फल अच्छ कौ।। फल अच्छ को सुख छिनक कारन फल सु गनिका गति धरी। अवतार साठि करोर धरि अति निंद मति पूरन करी।। अवतार पांच करोर फिरि पसिया भए निरदै पर्ने। बहु जीव घात करे जहाँ सुन जात पुनि मो पर भनै।।१५।। आगामी परजाय छोडि गज तन लियो। बीस कोडि अवतार धरे मरि जियो।। तजि गजि गति पुनि देह धरि खर जोनि मैं। साठि कोडि अवतार मिलै मरि होनि मैं।। मरि हौनि बार अनंत करि फिरि जनम कूकर को मिल्यौ। तह तीस कोडि प्रमान वर्षनि मास मल निस दिन गिल्यौ।। अवतार साठि सुलाख पुनि जग मैं नपुंसक के जनैं। दुख की सम्हारि नहीं जहाँ अति घोर दुरकर्मनि तनैं।।१६।। बीस कोडि अवतार धरे त्रिय के भिया। साधारन तन विषय वंत जन कौं प्रिया।। संपूरन करि आउकर्म धोबी भए। दस सहस्र घटि एक लाख जनम नठए।। जनमनठए एक लाख फिरि मरि धरि सरीर तुरंग को। वसुकोडि भव भुगती जहाँ फल विषय परानति संग कौ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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