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________________ १९२ देवीदास-विलास षटु काल साधत धरि सुधीरज एकचित संजिम धनी। दिढ काय जोग भए सु मुनि को कहि सकै उपमा घनी।।२।। इहविधि संजिम सहित काल कछु बीतियो। जह पुनि आदिजिनेस कर्म बल जीतियो।। चारधातिया कर्म कलंक जबै गयो। केवळ दरसन ज्ञान चरन पस्मट भयो।। परगट भयो बल ज्ञान दरसन सुद्ध परनति परनए। जह आनि तुरत कुबेर सुरंवर समवसरन रचत भए।। सो सकल विधि पूरन मनोहर प्रगट जिम आगम कही। तिहि मद्धि श्री जिनवर विराजत आदिनाथ प्रभू सही।।३।। षटु रितु के फल फूल जहाँ फूले फरे। ले भरथेश्वर अग्र सुवनमाली धरे।। भरथेश्वर वनमालिय सौ पुनि बूझिकैं। कीनौ अति अहलाद सुबात समूझिकैं।। सुसमूझि भरथेश्वर कही सबसौं बहुरि समुझाइकैं। पहुँच्यौ ततच्छ जिनेस तिन्हि को समवसरन सु आइकैं।। भरथेस अति आनंद सौं जब समवसरन विर्षे चले। उतसाह करि अति मन विचारत आजु जनम सफल फले।।४।। पहुँचे जह जिनराज जाइ दरसन कियो। जनम-जनम क्रत पाप गए हर्षत हियो।। जै-जै सबद करत पुनि अति आनंद भरे। सकल मनोरथ काज आजु पूरन परे।। पूरन परे सब काज जब जिनवर सुमुखु पुनि देखियो। बैठत सुनर कोठा विषै नर जनम वर करि लेखियो।। जह उठत ओंकार रूपी धुनि जिनेस निरक्षरी। सो स्यादवाद मई जिनेश्वर वानि सब संसैहरी।।५।। भरथेश्वर तह प्रस्न बहुत पूछी खरी। सो सब गनधर देव बताइ प्रगट करी।। हम कुल पुनि तीर्थंकर दूजै होइगौ। सो प्रभु देउ बताइ तौ संसौ खोइगौ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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