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देवीदास-विलास
दोहा अंकुस उपदेसु न लगै करि मदमंत समान। सुनौ संत कुमती पुरिष वरनौं परम अजान।।
सवैया तेईसा दान दया सु नहीं जिन्हि कैं न पयास मतो इन बोध बड़ाई। ध्यान नहीं न प्रमान व्रतादिक साधिक मोख नहीं बुधताई।। जोग जगै न लगै उपदेश पलैन क्रिया न कस्यौ तपयाई। या करतूति मिलै न जहाँ जिन्हि के घट कूर कुदुर्मति आई।।४६।।
दोहा
दुरमति के परसाद तैं भटक्यौ जीव अनंत। .. अब जाकी निरधारना करौ सुनौ गुनवंत।।
सवैया बत्तीसा पियें सुरा सु पानसी कियै कुरा कुमान सी दिय दुरादुध्यान सी लियै कुग्यान भारि है। उडैलनी अऊतसी छडैल छीद छूति सी भडैलभीति भूतसी कलेस को भडारि है।। वढावनी कुकाम की रढावनी कुवाम की पढावनी कुधाम की कुभाव दैन हारि है। चलै कुरीति अबंध की करावनी कुबंध की जगत्र की जुठेल सो कुबुद्धि कूर नारि है।।४७।।
दोहा देखौ यह मति दोखिनी करत भजन में भंग। पराधीन बहिरातमा याही कैं परसंग।।
.. सवैया इकतीसा सुग्यान भान कौं घटा जगत्र जीव कौं नटा करै घुटान कौं बटा कुगैल सो बतावई। सुसील सौं करै षटा विषै सवाद कौं चटा सुमान सै करैं सटा अरैल आपदामई।। पयूष को करें कटा चढी कुपंथ के अटा दियै सुपंथ को टटा फिरै कुवेसुवा भई। लखें कुबुद्धि की लटा सुचित्त संत कौ फटा धरै सु एक ई हटाझटा कि दुर्गहें गई।।४८।।
दोहा जाके घट यह पापिनी धरै सुनर बहु भेस। जा दुरमति की वारता सुनौ सुधी पुनि लेस।।
सवैया बतीसा वखाननी कुवाद की कुवात बेसवाद की कुगैल है अदाद की विषाद चित्त मैं भरै। छकीय मोह फांद की सुपंद्रहू प्रमाद की अपातता अनाद की मलीन आतमैं करै।।
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