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संख्यावाची साहित्य खण्ड
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दोहा सिवपद सुक्ख प्रकासिनी सुमति वधू जग माहि। अब जाकी महिमा कहौं मूरिष कै घट नाहिं।।
सवैया तेईसा सा चिय सुंदर सील सती सम सीतल संतनि के मन मानी। मंगल की करनी हरनी अघकीरति जासु जगत्र वषानी।। संतनि की परची न रची परब्रह्म स्वरूप लखावन स्यानी। ज्ञानसता वरनी गुनवंतिनि चेतनि नाइक की पटरानी।।२२।।
दोहा दरसन ज्ञान चारित्र मय चेतनि परम प्रधान।
और पदारथ जगत महि जे सरवंग अजान।। दर्शनमहातम
छप्पड़ अतुल सुख दातार सर्व मंगल तरु वीरज। भविजन तिन्हि कौं पोत सिंधु तारन भवधीरज।। विघन वृक्ष तसु हरन महातीछन कुठारमय तीरथ दान प्रमान पुन्य परधान हरन भय।। इम सुख सुधा द्रग पिवत घट होत सरल वर मोख मग। . जसु इहि प्रकार वसु जाम भनि समदंसन जयवंत जग।।२३।।
. दोहा सदबुद्धी तिन्हि कै हृदै भेद ज्ञान भरि पूरि। वरनौं ते सुकवित्त मैं अल्प भेद गुन मूरि।।
सवैया इकतीसा अघ अंधकार हरिवे कौं हंस रूप मोख कमला प्रकासिवे कौं कमल प्रमान हैं। मदन भुजंग रोकिवे कौं मंत्र अवगाढ चित्त नाग रोकिवे कौं केहरी भयान हैं।। टरत कुविघ्न जैसें हरत समीर घन विस्व तत्व लखिवे कौं दीपक समान हैं। विष मीन रोकिवे कौं होत महाजार जैसे ज्ञानकौं अराधै सोइ पुरिष महान हैं।।२४।।
दोहा कालु पाइ तिन्हिकै जग्यो वर विवेष अंकूर। जिन्हिके घट वर सदा चारि भावना भूर।।
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