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संख्यावाची साहित्य खण्ड
तोटक छंद समदंसन नीर प्रमान कह्यौ तिन्हि कैं घट जास प्रवाह बह्यौ। बधु वालुव कर्म अनादि खगे तसु फूटत नैंकु न वारु लग।।७।।
सवैया तेईसा जे नर सम्यक दंसन हीन तिन्हें अति दुल्लभ ज्ञान कला है। ग्यान कला बिनु जे नर हैं तिन्हि सौं कवहूँ न चरित्र पला है। जे बिनु चारित हैं जग मैं तिन्हि कौं न सुकारत होत भला है।। सम्यकतादि बिना करतूति करी तिन्हि आतम राग छला है।।८।।
छप्पय धर्मवंत जो संत सील संजुत व्रत भारी। करन दमी संजमी नियम उत्तिम गन धारी।। जोग दमी जोगी जगत्र वेदी तप चारी। समदरसी परसी सुतत्व भ्रम भीत प्रहारी।। परवीन सकल करतूति महि कहत जासु दूषनं सुजन। मरि-मरि स परत नर नरकगति फिरि-फिर पावत भगन तन।।९।।
चौपही जैसे तरवर विनस्यौ मूल जह न खंद साखा फल फूल। जैसे बिनु दरसन नर कोइ धर्म मूल बिनु मुक्ति न होइ।।१०।।
अरिल्ल जैसे तरवर मूल पेड साखा सुदल। तिन्हि प्रति पुनि परिवार विराजत फूल फल।। जैसें समदरसन सुमूल सम्यक्त गुन। सम्यक सिवतरु मूल मुक्ति मारग सु पुन।।११।।
कडरिया दरसन करिके हीन हैं धरै जती कौ नांउ। दरसन धारी सौं कहैं परौ हमारे पांउ।। परौ हमारे पांउ तजै निजु मारग ठौरा। जे नर मर कर हौंहि निपट लूला अरु बौरा।। कबहू फुरै न ज्ञान कष्ट सहि बहु वरसन। तिन्हि कौं देवीदास कठिन हूवौ समदसरन।।१२।।
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