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________________ १६४ देवीदास-विलास सवैया इकतीसा धरम को मूल जामैं भूल कहूँ एक नाहि दंसन सुनाम ताहि भगवान भाख्यौ है। गनधर रच्यौ जैसो गुन कौं निधान भारी जाकै कान भए सोइ सुनि सुनि चाख्यौ है। भैनिकजू आदि जीव संत सब सुचि मानी समझि-समझि ताहि घर मांहि राख्यौ है। दरसन सु हीन बाल वंदिये सु तीनिकाल कारज न होत जिनवानी मांहि नाख्यौ है।।२।। छप्पय दरसन करिकै हीन-हीन सोहै जग मांही। दरसन करिकैं हीन जासु अव्वय पद नाही।। जो चरित्र करि हीन होइ जौ दरसन धारी। क्रम-क्रम सेती तौन पुरिष पावै सिवनारी।। भवि देखौ यह संसार महि बिनु दरसन जे नर रहें। सो संत पुरिष यह जानिक चल सबऊ तिन्हि सौं कहें।।३।। छप्पय सम्यक रत्त विहीन करें जन जौ बहु कथना। जानैं बहुत पुरान भेद नाना विधि मथना।। दरसन ग्यान चारित्र तपै आराध्यौ नाही। ज्यौं हूं भ्रमै अनादि भ्रम्यौं त्यौं हूं जग माही।। भवि देखौ यह संसार महि बिनु दरसन जे नर रहैं। सो संत पुरिष यह जानि कैं चल सबऊ तिन्हि सौं कहैं।।४।। छप्पय सम्यक बिनु जो पुरिष धरत बहु विधि प्रकार जप। सहस भाँति अति कष्ट उग्र अपि करत परम तप।। सहस कोटि वर्षन प्रमान साधे सुकाल षट। बोध बीज सम्यक स्वरूप प्रगट्यौ न जासु घट।। भवि देखौ यह संसार महि बिनु दरसन जे नर रहैं। सो संत पुरिष यह जानि कैं चल सबउ तिन्हि सौं कह।।५।। तेईसा सम्यक दर्सन सम्यकज्ञान जगे जिन्हि के घट मैं गुन दोइ। जा सुहु र्दै बलवीरज वृद्धि सम्रद्धिं सु तौ प्रगटै पुनि सोइ।। जे नर पुन्य प्रधान जहा मल पाप अनू न रहै छिन कोइ। कौंन अचिर्जु तिन्हैं वर ज्ञान समै भरि भीतर मैं पुनि होइ।।६।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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