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संख्यावाची साहित्य खण्ड
गतागत छंद
वैस तजी गजराज तरी कु कुरीति जरा जग जीत सबै । बै सु भौन अनूप असार रसा अपनू अनभौ सु जबै ।।
बैठन जोग जथा कवि भास सभा विकथा जग जो नठबै ।
वै भग जोनि मुखी सुख सेवि विसेख सुखी मुनि जोग भवै । । १२ । ।
दोहरा
मन वच तन पर द्रव्य सौं कियो बहुत व्योपार | पराधीनता करि पस्यौ टोटौ विविध प्रकार ।।
सवैया इकतीसा
अरे हंसराइ औंसी कहा तोहि सूझी परी पुंजी लै पराई बंजु कीनौं महा खोटो है। खोटो बंजु कियै तौकौं कैसे कै प्रसिद्धि होइ नफा मूर थैं जहाँ सिवाहि व्याजु चोटो है। । बेहुरौ सौं बंध्यौ पराधीन हो जगत्र मांहि देह कोठरी मै तूं अनादि को अगौटौ है । मेरी कही मांनु खोजु आपनौ प्रताप आप तेरी एक समै की कमाई कौ न टोटो है ।। १३॥
दोहा
दया दान पूजा पुजी विषय कषाय निदान। ए दोउ सिवपंथ मैं वरनैं एक प्रमान ।। सवैया इकतीसा
दया दान पूजा सील पुंजी सौं अजानपनैं जे तो हंस तू अनंतकाल मैं कमाइगौ । तेरी वेविवेख की कमाई सो नर है हाथ भेदग्यान बिना एक समैं मैं गमाइगौं । अलख अखंडित स्वरूप सुद्ध चिदानंद जाके बंज माहि एक समैं जौ रमाइगो । मेरी कही मानुं यामैं और की न और एक समैं की कमाई तूं अनंतकाल खाइगौ ।। १४ ।। दोहरा सोइ अंछर प्रष्न के उत्तमै सुसमात ।
सिष्य सुगुरु पूछै कहै वर विवेख की बात । ।
छप्पइ को कवि वरनैं मूढ को परमधर्म विछोही । कोपरहित उपगारवंत देखों जग टोही । ।
कोप करै दुख फंद बंध काया जग कारन । काया जग में झूठ काजु आतम जग तारन । ।
१५५
का मरम दुष्ट देखौ प्रगट काम हंत करता सुवल । यह प्रष्न ही उत्तर वचन अर्थ भेद करि कै सलल ।। १५ ।।
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