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देवीदास-विलास रे तन दीन सले करमास समार कलेस नदी न तरे। रे जन हीन मुधा वसि मार रमा सिवधामु नहीं न जरे।।८।।
दोहरा पद एकादस वरन कौं दुगुन करत तुकबंध। उलटि पुलटि नटषे लसौ केलि गतागत छंद।।
गतागत छन्द रे मह मो पुरिहीन कुवंसु सु वंकु नही रिपु मोह मरे। रे मद राग षदो गम धामु मुधा मग दोष गुरा दम रे।। रे महिमा छिन मास निहार रहा निस मान छिमाहि मरे। रे मथ मैं यहि देवियदास सदाय विदेहिय मैं थम रे।।९।।
. जथार्थमुनि वर्णन- दोहरा भैया तिनि मनु यंम के खोज्यौ खोजु लगाइ। जे यह भव संसार में तारन तरन सहाइ।।
गतागत छंद 'तीरथ गंग विहीनर साप पसार नही विग गंथ रती। तीपथ सादत संघ अदोष षदो अघ संत दसाथ पती।। तीमग मैं वसि कैं सिंधुरेसु सुरेधुसिं कैं सिव मैं गमती। तीजग जोनि तजी नवरासि सिरावन जी तनि जोग जती।।१०।।
दोहरा मन वच काया सौं नहीं सिद्ध होत सिव काज। बरनैं सदा स्वजोग मैं जे बरनौं मुनिराज।।
गतागत छंद माजत जे लखि जोति गहीर रही गति जो खिलजे तज मा। मानत खेल सुधी तन जासु सु जानत धीसु लखे तन मा।। माहर जीव पसार सु नीमु मुनीसु रसा पव जी रह मा। मारग जो सुख मोह रचें न नचै रह मोख सुजोग रमा।।११।।
दोहरा दरसन ग्यान चारित्र निज मन वच तन परजोग।
सुधी सुगुन आचरत नित विमुख सदा परभोग।। २. यह पद्य बुद्धिवाउनी (पद्य संख्या ८) में भी उपलब्ध है।
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