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पुनि नेमिनाथस्तुति
देवीदास - विलास
दोहरा
दो दो अछर जोरि कैं जह तैं बांचौ मित्त | बांचत एक कवित्त मैं अरतालीस कवित्त । । चौवीसा
तजि राजमती गिरनार गये वर जोग धरे व्रत आन हियै । भजि काज जती सिर भार लए धर सोग हरे म्रत जान जियै । ।
रजि लाज हती खिर डार दए परभोग करे नृत ग्यान लियै । अजिता जगती तरि पार भए सर रोग टरे त्रत ध्यान दियै । । २ । । दोहरा (चन्द्रमा बन्ध)
विमल न रवि-सम हेत वि तु तमह विनासी ठौर । ज्यौ श्रीपारसुनाथ तजि संसौ हरै न और । ।
गीतिका (मडरबन्ध)
सरद गरम त ठठुर तन रितु और जल गज बरस । सरव जग लज रहे तह मनु थंवि परवसनरस । ।
सरन सवर पवित्र पारिसु गहक नुति हम सरस । सरस मह तन करसु नव दम कमठ तम रग दरस । । ३ । दोहरा
वर्द्धमान सिवपद लयौ वध करि भ्व गति भर्म । पापै कस आपै गह्यौ दयौ छोभ वसु कर्म । ।
छप्पय (अन्तर लपिका)
कहा धर्यौ तिन्हि ध्यान अखै कह लियो ध्यान धरि । पैंत थंभ सम कहा तज्यौ को मित्र कवन अरि ।। कीनी कवन विलोकि दया मत कौनु प्रकर से । कह सौं तजे ममत्व कवन कहिये सो सासे । ।
तसु नाम अंक नव आदि तैं अंत अंक सौं अर्थ पिन तीर्थंकर मन तैं अंत मैं वर्द्धमान दी जैत जिन ।। ४ ।।
दोहरा
तीर्थंकर बंदौ प्रगट वर्त्तमान जिहि ठौर । सेवक लह तसु पंथ तसु क्रम - क्रम सौं सिव पौर । ।
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