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देवीदास-विलास जैसें सुद्ध ज्ञान की प्रवर्तना है ग्येय विषै व्यवहारनय के प्रमान सौं सगत है। सुद्ध नयन निह● प्रमान ज्ञान एक ठान चग्यौ चिदानंद के समूह मैं दगत है।।१९।।
दोहरा पुनि वरनौं उपचार करि ज्ञेय ज्ञान संबंध। ग्रहन तजन जिन्हि मैं नहीं सपरसादि रसगंध।।
सवैया इकतीसा सुद्धनय सौं सु जेन जाइ परतत्व गहें नहीं परतत्त्व के प्रमान परिहरे हैं। आपहू तैं आप जाकै विमल सुदिष्टि जागी जहा ग्येय रूप से न परिनाम करे हैं।। सरवांग देखै जानैं आपनैं प्रदेसनि सौं इच्छा विनु ज्ञेयाकार ज्ञान ही मैं धरे हैं। प्रगट्यो निकंप जोति केवल समस्त ग्यान जैसे वीतराग आप आपु अनुसरे है।।२०।।
दोहरा परम अतिंद्रिय ज्ञान है सबको जाननहार। जाकी पुनि महिमा कहौं करि कवित्त निरधार।।
सवैया इकतीसा रहित प्रदेस महासूछम अपरदेसी काल अनू आदि भेद जाही सौं सपरसे। सहित प्रदेश पंच अस्तिकाइ भेदाभेद मूरतीक पुद्गल प्रमान सबै दरसे।। सुद्धजीव आदि और दरव अमूरतीक अतीत अनागत सुभाव रहे भरसे। औसो है अतिंद्रिय असेष वीतराग ग्यान इंद्रिय विकार नाहीं जामैं जरे परसे।।२१।।
दोहरा जैसे निरमल ग्यान मैं भासे तत्व समूह। सो दिढ करि दिष्टांत सुनि सदगुरु भाषित कूह।।
सवैया इकतीसा जैसे काहू सिलपी लिखै हैं सोच ते उर मैं बाहूबलि भरथादि गए होहि नर ते। होनहार भैनिकजू आदि तिरथंकर जे धरे वर्तमान काल देखे दिष्टि भर ते।। जैसे ग्यान गुन मैं समस्त परजाय भासी होइ मैं विनासी आरौं हौंहिगे समर ते। जैसो है सुभाव जीव सुद्ध परिनामन कौं अतीत अनागत समैं मैं एक वरते।।२२।।
दोहरा ज्ञानी है सो आतमा ग्यानी और न कोई। पंच दर्व ति जिन्हि के विर्षे ग्यान गम्य सुन होई।।
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