________________
१३०
देवीदास - विलास
गुरु मुख ग्रंथ सुन्यौं नहीं मुन्यौं जथावत आप। निज पर मनु समझावनौं निरविकल यह जाप । । ४८।।
(५) शीलांग चतुर्दशी
दोहा
सील सहित बंदौं सुसिव गए कर्म वध छोरि । कहौं भेद सीलांग के सहस अठारह जोरि । । १ ।।
चौपहीछन्द
देवी प्रथम दूसरैं नरनी पुनि तीजै तिरजंचनि वरनी। चौथे लिखी चतेवर नारी इहि परकार विकलपन चारी ।।२।।
मन-वच - जोग विषै पुनि काया क्रत कारित अनमोद बिछाया। तिगुनि तीनि पर नव गनि लीजे जुवति चारि विधि नव पर दीजे । । ३ । ।
ये छत्तीस भेद विस्तरिये एक - एक इंद्रिनि पर धरिये ।
छत्तिस पंचै करि सु बहोरौ गनि एकुसैअसी सब जोरौ । । ४ । ।
पुनि कंदर्प भेद दस जानौं ते वरनौं करि ठीक ठिकानौं । संसकार तन प्रथम सुदीरा दूजैं पुनि सिंगार सरीरा । । ५ । । तीजै गनि सराग सेवंता क्रीडा हासि चतुर्थम गंता। पुनि संसर्ग पंचमै कामा छटै विषै संकल्पन वामा । । ६ ।। तन निरीछनौ सप्तम भेदा तन मंडन अष्टमै उभेदा । मैं भोग पूरव सुमिरंता मन चिंता दसमै वरतंता । । ७ । ।, असीएकुसै भेद सु वरनैं ते इन्हि दस थोकनि पर धरनैं । इहि परकार जोर सब देखौ भेद अठारहसै गनि लेखौ ||८|| लिंगविहित पुनि दस विधिकेरे वरनौं सुनो सुप्रीतम मेरे । चिंता प्रथम प्रवर्तत भारी दूजैं दरसन वांछा कारी ।। ९ ।। पुनि तीजै दीरघ उस्वासा चौथें कामज्वर दुरवासा। अरु पंचमै दहै पुनि देही भोजन छटै रुचै न सु तेही । । १० ।।
होइ प्रपन्न मूरछा सातैं आठ कामअंध मद मातैं । नमैं प्रान संदेह समूझौ मोचन सुक्र दसौं पुनि बूझौ । । ११ ।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org