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संख्यावाची साहित्य खण्ड
१२३ हरे हैं सुपारसु जिनेस हरे पारसु हैं हरे कर्म कंज हो तुसार सम सियरे। चंदप्रभ सेत हैं सुपेत हैं स पुष्पदंत सो हैं सेत महामक्ति कामिनी 6 नियरे।। कारे मुनिसोव्रत हैं, कारे हैं सु नेमिनाथ बसै देवीदास के सु आठों जाम हियरे। लाल पदमप्रभ जिनेस लाल वासुपूज बाकी बचे षोडस जिनेश्वर सो पियरे।।७।। (२) सप्तव्यसन-वर्णन
दोहरा दूत मास मद वेसुवा अरु आखेट कुधाम। चोरी परजुवती रमन सात विसन के नाम।।१।।
गंगोदक छन्द जुवा थें नहीं पाप हैं और दीरघ सवै पाप हैं ते जुवा मैं बसे हैं। सही सात अघ को जुवा मूल है सो सकल गुन हते ते जुवा मैं नसे हैं।। यही दूत खेलें सवै पंडवन देस हारे महा सो अवेरा परे हैं। सधन पाप के भर सु ये मैं वखानें सु ते पाप लोगनि खिलौना करे हैं।।२।। भखे मांस जिन्हि जीभ के स्वाद काजै सु जे मूढ पापी चले नर्क जै हैं। नहीं सुख है लेस किंचक जहां घोर संकट महाकष्ट करिकै सहै हैं।। पछारे सु बकुरा इदै भिंम्मनै मांसके पाप ते देह दुर्गति धरे हैं। सघन पाप के भर सु ये मैं बखानैं सु ते पाप लोगनि खिलौना करे हैं।।३।। सुरा पानि पीकै छकै मूड पापी रहे बेखवरि वे मजादा भए हैं। . नहीं जे सुपुत्री लखें माँ सहोदरि कहैं वाइली वात दुर्गति गए हैं।। यही सो सुरापानि के पाप तैं वंस जादौं सवै द्वारिका मैं जरे हैं। सघन पाप के भर सु ये मैं बखानैं सु ते पाप लोगनि खिलौना करे हैं।।४।। विषैवंत जन के हरै धर्म कौं जे रहें वेसुवा सौं व्रथा जन्म खौवें। सवै विघन को ग्रह सु है वेसुवा वेसवा के रसी जे कुधी नीच होवें।। विर्षे लालची जे रमैं वेसुवा सौं महापाप बूडें नरक औतरे हैं। सघन पाप के भर सु ये मैं बखानैं स ते पाप लोगनि खिलौना करे हैं।।५।। रहे वेसुवा सौं सही चारुदत्त सेठि अघ सौं असर्फी सवै खोइ दीनी। रही हात कौडी नहीं खर्च कौं वेसुवाला गए काम की दिष्टि कीनी।। उठै ले बिना दाम दै छांव छोई विषै पाप तै तिन्हि महा दुख भरे हैं। सघन पाप के भर सु ये मैं बखानै सु ते पाप लोगनि खिलौना करे हैं।।६।। करें पाप जे पारधी हैं भए रूप राचै नहीं प्रान जीवनि सतावें। सु हैं दुष्ट पापी अखेटी सही जीभ के लंपटी जे महादुख पावै।।
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