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२. संख्यावाची साहित्य खण्ड (दर्शन, सिद्धान्त, अध्यात्म एवं नीतिपरक मिश्रित साहित्य)
(१) पंचवरन के कवित्त.
दोहा पंचवरन यह जगत महि अरुन श्याम अरु पीत। सेत हरित जिन नेमि की अस्तुति कहौं पुनीत।।१।।
सवैया इकतीसा लाल लसिउ देवी कौं सुवाल लाल पाग बाँधैं लाल द्रग अधर अनूप लाली पान की। लाल मनी कान लाल माल गरें मूंगन की लालअंग झंगा लाल कोर गिरवान की।। लाल रंग फेंटा लाल मोजा लसैं पाइनि में लाल-लाल सबै मिलि खेले सभा कान की। जाको लाल रूपदेखि लाजैं कोटि कामदेव होत लाल जोति है अलोपकोटिभान की।।२।। कारे हैं किसोर सो झुलाए वाही अंगुली सौं कारे नेमिनाथ कारी नागसेज दली है। कारे पसु बँधे वध काजै देखि कारे भए कारी कंदला में गही गिरनार गली है।। कारे नीर भरे अध-ऊरध घटा है कारी भादौं की अंधेरी कारी-कारी मेघ झली है। कारी सिखा शैल की विराजे जापैदेह कारी मानौं गजकुंभ पै करै कलोल अली है।।३।। सिंघासन से तपै समूह सेत वारिज है जातेंसेत दंड की प्रभा उतंग चली है। जापै सेत छत्र धरे हीरा नगसेत जरे मानौं सेत भान आनि करी रछपली है।। सेत जगमगै जोति सेत फूल वष्टि होती सेत ध्यान धरै सेत धरै मुक्तगली है। सेत संख लछन विराजै जे जिनेस जानैं मानौं सेत कंज पै करै कलोल अली है।।४।। पीरी रची भूमि जहां सौंम की कुबेरजू नैं कटिनिका पीरी पीरौ कोटु महाबली है। पीरे नरथंभ जापै अथिर पताखा पीरी पीरे फूल झरै सूधे परें नीची नली है।। पीरी रंग केसरि की छिरक समंत दीसैं पीरे हैं अशोक वृछ सोभा सबै भली है। पीरी गंधकुटी पै विराजै नेमिनाथ ईस मानौं चंपकली पै करै कलोल अली है।।५।। रागदोस पासि हरै, चिंता भै निवास हरे, खेद, स्वेद निद्रा मोह माया जार हरे है। अरति अचिर्ज हरे, छुधा त्रसा विर्ज हरे काम मद सिर्ज हरे भोग ज्ञान खरे है।। सुखी तन लर्म हरे घातिया सुकर्म हरे लोक रूढ धर्म हरे महाध्यान धरे हैं। " जरा जोग हरे हरे वन में निवास करे रोग सोग हरे फेरि औतरे न मरे है।।६।।
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