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स्तोत्र-स्तुति-वन्दना खण्ड
१२१ जे निरवार विसुद्ध भये तन चेतन कर्म पुरातम गोभा।
श्री नमिनाथ सदा शिवकी वरनैं कवि को सु सदा करि सोभा।।२१।। (२२) श्री नेमिनाथ जिन-वन्दना
राजमती सी त्रिया तज के पुनि मोख वधू सुत्रिया को सिधारे। राजविभौ सबही तजके सब जीवन दान दिये हितकारे।। आतम-ध्यान धरे गिरनार पै कर्म कलंक सबै तिनि जारे।
जादौं सुवंस करौ सब निर्मल जो जगनाथ जगत्रि नै तारे।।२२।। (२३) श्री पारसनाथ जिन-वन्दना
सवैया नामकी बढ़ाई जाके पाहन सुपाई काह। ताहि स्पर्श होइ कंचन सु लौह कौ।। अचरज कहा है तिन्हको सु निज ध्यान धरै। सहज विनाश होत राग-द्वेष मोह कौ।। तिनही बतायो मोख मारग प्रगट रूप। कर्मतन चेतन विछोह कौ।।। देखो प्रभू पारस की वार सुस्वरूप जाने।
भयो सो करै या सुद्ध आतमा की टोह कौ।।२३।। (२४) श्री महावीर जिन-वन्दना
सवैया
सफल सुरेश शीश नावत असुरेश ईश। जाके गुण ध्यावत नरेश सर्व देश के।। धोय मैल कर्म चार-घातिया पवित्र भये। थिर हो अकंप विर्षे आतमा प्रदेश के।। तारण समर्थ भवसागर त्रिलोकनाथ। करता अनूप शुद्ध धर्म उपदेश के।। ऐसे वर्धमानजू के वंदना त्रिकाल करौ।
दाता जे 'जगत्रि माँहि सुमति सुदेस के।।२४।। १. मूल प्रति में “जणत्रिमाँह".
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