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स्तोत्र - स्तुति-वन्दना खण्ड जिन शान्तिनाथ सुशान्ति करता अष्ट कर्म सु मारिकै श्री कुन्थुनाथ सु हीन करता दुख चतुर्गति टारिकै । । ४ । । अरि कर्म जीतन मल्लि जिनवर जासु गुन उर धारिये परमात्मा सुखकेतु मुनिसुव्रत न उरतें टारिये ।। नमि-नेमि-पारसनाथ-जिनवर वर्द्धमान सु अन्त मैं । वरनैं सुजिन चौबीस पूजौं सु अति हो निश्चिन्त मैं । । ५ । ।
(४) चतुर्विंशति जिन - वन्दना
(१) श्री आदिनाथ जिन वन्दना
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कवित्त
सोभित उत्तुंग जाकौ पाँच धनुष सै अंग । परम सु रंग पीत वर्ण अतिभारी है । । गुण सो अथंग देख लाजत अनंग को है। कोट सूर सोभ जातैं प्रभा अधिकारी है ।। द्विविध प्रकार संग जाके नाहिं सरबंग | डारिके भुजंग भोग तृष्णा निरवारी है । । होत मन पंग जस सुनत अभंग जाकौ । ऐसे नाभिनंदनंद्यों वन्दना हमारी है । । १ । ।
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(२) श्री अजितनाथ जिन-वन्दना
छप्पय
द्रष्टा भाव नोकर्म कंज - नाशन समान हिम |
जन्म जरा अरु मरण तिमिर छय करण भान जिमि । ।
सुख समुद्र गम्भीर मार कुंतार हुतासन ।
सकल दोस पावक प्रचण्ड झर मेघ विनाशन ।।
पाइक समस्त जग जगत गुरु भव्य पुरुष तारन तरन । बन्दों त्रिकाल सुविसुद्ध करि अजित जिनेश्वर के चरण ।। २ ।।
(३) श्रीसम्भवनाथ जिन-वन्दना
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कवित्त
मोह कर्म छीन के सुपरम प्रवीण भये । फटक मणि भाजन मँझार जैसे नीर है । ।
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