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________________ ११४ देवीदास - विलास आठ प्रतिहारज दिपै हो परम चतुष्टय कौ सुख न अंत । छयालीस गुन के धनी हो तारन तरन जगत निश्चिंत ।। तीर्थंकर ध्याइये हो परमपद पाइये हो । । ५ । । सिरीयपाल सागर तरे हो तिन्हि को नाम जपत गम्भीर । मानतुंग मुनिराज के हो सुमरत टूटि गए जंजीर।। तीर्थकर ध्याइये हो परमपद पाइये हो । । ६ । । सारिमेव सुरगै गए हो सुरपद लहचौ अंजनाचोर। वादिराज मुनि की गई हो सुमरत कुष्ट व्याधि अति घोर । । तीर्थंकर ध्याइये हो परमपद पाइये हो । । ७ । । महिमा श्रीजिनराज की हो सो कवि कहै कहा लौं कोई । नागेसुर गनधर थके हो कहत न पारु पावत सोई । । तीर्थंकर ध्याइये हो परमपद पाइये हो । । ८ । । (३) जिन - नामावली गीतिकाछन्द बन्दौं सुपद अरहन्त सिद्ध समस्त उरधर ध्यायकें बन्दौं सु आचारज और उवझाय मस्तक नायकें चरणारबिन्द सु साधु तिनके निरख कर शिर नायकें । कर भिन्न-भिन्न सु नाम जिन- चौबीस के गुण गायकें । । १ । । बन्दौं प्रथम आदीश जिनवर बहुर अजित जिनेश जू । सम्भव सु अभिनन्दन जिनेश्वर सुमति श्रीपरमेश जू । । छठवें सुपद्मप्रभु सुपारसनाथ देव सु सातवें । लखिये सुचन्द्रप्रभ जिनवर परखिये निज आठवे । । २ । । । जिन पहुपदन्त नमीं सुसीतलनाथ के पद पूजिये । गण ग्यारहें श्रेयांस-जिनवर भक्तिवन्त सु हूजिये । । वर वासुपूज्य जिनेस पूजत सरब सुख-सम्पत्ति मिलै । श्रीविमलनाथ जु माथ नावत जात सब संकट विलै । । ३ । । जिनवर अनन्त-अनन्त-गुण- गण जासु महिमा को कहै । जिनधर्म धर्मधुरा सु तिनके शरण पुन सब लोक है । । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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