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________________ ११२ देवीदास-विलास जे निजधर्म सहित परधान करत हीन दुख नियम प्रमान। जे पर. अप्पा-परताइ सुगुन विचारि हौहि सिवराइ।। १२ ।। आनंदमई आतमा जुक्त सब संकल्प-विकल्प विमुक्त। धरत सुभाव आप में आप करत ध्यान जोगीश्वर जाप।।१३।। आनंदमई ग्यान परवीन निराकार निरभै गद हीन। सुख-अनंत करि सहित सुपंथ निरमल निरलोभी निरगंथ।।१४।। निश्चयलोक मात्र जिय जान व्यवहारी सु सरीर प्रमान। इहविधि भेद आतमा भयो जैसो श्रीजिनवर वरनयो।।१५।। ता छन लख्यो आतमा सुद्ध ता छन नसे कुभाव कुबुद्ध। ता छिन थिर होइ ब्रह्म अराध ता छन मिटे शकल अपराध।।१६।। सोई परम ब्रह्म परधान सोई शिव-रूपी भगवान। सोई परमतत्व निरधार सोई महापरमगुन सार।।१७।। सोई परमजोति परवीन सोई परमतपोधन लीन। सोई परमध्यानमय धीर सोई परमआत्मा वीर।।१८।। सोई सरव करन कल्यान सोई सुख भाजन दुख हान। सोई सुद्ध सदा पद ठीक सोई प्रगट आतमा लीक।।१९।। सोई सहित परमआनंद सोई सुखदायक निरदंद। सोई सुद्ध परम चैतन्य गुनसागर सोई परभिन्य।।२०।। देखत होत परम अहलाद रागदोस वजि तक्कवाद। निरआकार सुद्ध सु अनूप सदा सहित निज स्वगुन स्वरूप।।२१।। वसु गुन सहित सिद्ध सुखधाम निरविकार निरअंजन राम। जा सम सकल आतमासार जानत पंडित भेद विचार।।२२।। चेतमि सुद्ध चिन्ह परवान केवलदरसन केवलज्ञान। चेतनि शहित परम आनंद चेतनि जसु भुव प्रगट सुछंद।।२३।। दोहरा पाहन मैं जैसे कनक दही दूध में घीउ।। काठि माहि जिम अगिनि है ज्यौं शरीर में जीउ।।२४।। तेलु तिली के मध्य है परगट हो न दिखाई। जतन जुगति मैं भिन्नता खरी तेलु हो जाई।।२५।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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