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१. स्तोत्र-स्तुति वन्दना खण्ड
१. परमानन्द स्तोत्र-भाषा
दोहरा परमब्रह्म परमात्मा परमदेव परधान। बंदौं परमानंद मैं परमरूप भगवान।।१।।
चौपही चेतनि शक्ति-शहित आनंद निरविकार निरगद निरद्वन्द। ध्यानहीन तसु सूझत नाँहि अप्पा आपु यही घट माँहि।।२।। सुखसागर अनंतमय ज्ञान अरु अनंत बलवीरजवान। दरसन सहित अनंत सुधाम इह विधि अलख आतमाराम।।३ ।। निरविकार निरबाध अभंग अंतर बाहिज मैं निरसंग।
आनंदमई सदा अविरुद्ध ए चेतन लच्छनि कहि विसुद्ध।।४।। चिंतत नर उत्तिम आतमैं मद्धिम मगन मोह गात मैं।
अधम चिंतवत हैं नित काम महा अधम चिंतत परधाम।।५।। विकल परहित अमृतरस ज्ञान धरि विवेक अंजुलि परवान। पीवत ताहि मुनीश्वर जान पावन पद अविचल निरवान।।६।। आनंदमई सदा यह जीव जानत ते बुध कहे सदीव। सो शरदहै आतमाराम कारन परमानंद सुताम।।७।। ज्यौं नलिनी जल के संग रीत जलते रहत निरंतर तीत। ज्यौं घट बसै आत्मा चिन्न निरमल रहै देह तैं भिन्न।।८।। द्रिव कर्म तैं न्यारौ हंस भावकरम बिनु वर निरवंस। अरु नोकर्म रहित शिवगाम निश्चय रीति आतमाराम।।९।। आनंदमई ब्रह्मगुन कूप णिज तन माँहि विराजत भूप। ध्यानहीन किम लखें अजान जैसे अंध न जानैं भान।।१०।। ध्यान धरत भविजन दिढ़ काइ ध्यान माँहि मनु रहत समाइ। लखि परब्रह्म करत निरधार लच्छन शकल आतमासार।।११।।
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