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________________ प्रस्तावना ९७ रह ही नहीं जाता। मन का उस परम-शक्ति से ऐसा अनन्य नेह लग जाता है कि वह उसके बिना ठीक उसी प्रकार नहीं रह पाता, जैसे कि जहाज का पंछी उड़कर अन्यत्र नहीं जा पाता और पुनः वहीं लौटकर आ जाता है। यथा मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे । जैसे उड़ जहाज को पंछी फिर जहाज पर आवे । । सूरसागर, १ / १६८ देवीदास ने भी मन की दोनों स्थितियों - (१) चंचलता और (२) स्थिरता का दिग्दर्शन कराते हुए बतलाया है कि मन तो अनादि काल से अस्थिर है। वह ध्वजा की तरह चंचल होकर यहाँ से वहाँ उड़ता रहता है। लेकिन जब उसको वश कर लिया जाता है तो वही मन जहाज के पंछी के समान स्थिर हो जाता है और जिसका मन स्थिर हो जाता है, वह सहज ही में शुद्धात्मा का स्पर्श कर लेता है । फिर उसका सांसारिक विषय-वासनाओं का व्यापार स्वतः ही समाप्त हो जाता है "मन की दौर अनादि निधन इम जैसे अथिरपताखा । सो जहाज पंछी सम कीनी थिर जिम दरपन ताखा ।" राग. ४ / क / ३ मन जाको निज ठौर है परसि आतमाराम | कहि साधौं जाके नहीं धंधौ आठौ जाम ।। उपदेश., (९) सारग्राही वस्तु का ग्रहण कबीर ने परमात्म-पद को प्राप्त करने के लिए भौंरे का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि जिस प्रकार भौंरा घट-घट से ग्रहण करने योग्य वस्तु को पहचान कर उसको ग्रहण कर लेता है और निरर्थक वस्तु का त्याग कर देता है । उसी प्रकार मानव को चाहिए कि वह परमात्म- पद को प्राप्त करने के लिए सारग्राही वस्तुओं को ग्रहण करले और निरर्थक वस्तुओं का त्याग कर दे २/१०/२५ "कबीर औगुण न गहै गुण ही कौं ले बीनि । घट-घट महु के मधुप ज्यूँ परआतम ले चीन्ह । । कबीर ग्रन्था., पृ ४३ "जब गुण के गाहक मिले तब गुण लाख बिकाई । जब गुण कूँ जाने नहीं कौड़ी बदले जाये । । कबीर - संकलन ग्रन्थ., पृ. २४ देवीदास ने भी परमात्म-पद की प्राप्ति के लिए ग्रहण योग्य वस्तुओं को ग्रहण करने एवं त्यागने योग्य वस्तुओं को त्याग देने की सलाह दी है " ग्राहक जोग वसत ग्राहज करि त्याग जोग तजि दीन्हौं रे । धरनैं की सुधारना धरि पुनि करनै काजु सु कीन्हौं रे । राग ., ४/क/ २ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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