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________________ ९४ देवीदास-विलास दादू के गुरु तो, जैसे ही उनके मस्तिष्क पर आशीर्वाद का हाथ रखते हैं, वैसे ही उन्हें अगम-अगाध के दर्शन हो जाते हैं दादू गैब माहि गुरुदेव मिल्या पाया हम परसाद। मस्तक मेरे कर धरया देखा अगम अगाध।। सन्तसुधासार, पृ. ४४ सुन्दरदास (१५९६ ई.) के गुरु ने भी दयालु होकर उनका मिलन परमात्मा से करवा दिया। यथा परमातम सो आत्मा जुरे रहे बहु काल। सुन्दर मेला करि दिया सद्गुरु मिले दयाल।। सुन्दर दर्शन, पृ. ११७ जायसी ने पद्मावत में हीरामन तोते को गुरु रूप में प्रतिष्ठित किया है। यथा"बिन गुरु पंथ न पाइअ भूले सोई जो भेंट।।" पद्मावत, पद. २१२ उनके रहस्यवाद का मूलतत्व प्रेम है और प्रेम को प्रदीप्त करने वाला गुरु ही है। हीरामन तोता गुरु रूप है और सारे विश्व को उसने शिष्य बना लिया है। वह गुरु साधक-शिष्य के हृदय में विरह की चिनगारी प्रक्षिप्त कर देता है और सच्चा साधक उसे सुलगा देता है गुरु विरह चिनगी जो मेला, जो सुलगाई लेई सो चेला।। पद्मावत-पद. १२५ सूरदास ने भी भवसागर से पार उतरने के लिए गुरु के महत्व को दर्शाया है। उनके अनुसार गुरु ही अन्धकार में विलीन होने वाले पथ को दिखलाने वाला दीपक है। वह ऐसा सामर्थ्यवान् है कि क्षण भर में ही उद्धार कर सकता है। यथा "गुरु बिन ऐसी कौन करे, माला तिलक मनोहर बाना लै सिर छत्र धरै। सूर श्याम गुरु ऐसो समरथ छिन मैं लै उधरै।। सूरसागर, पद. ४१६ तुलसी ने रामचरितमानस के प्रारम्भ में ही गुरु की वन्दना की है और उन्हें कृपासागर माना है। मोह भ्रम का निवारण करने में सूर्य रूपी गुरु ही एक मात्र सहायक है बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नर रूप हरि। महामोह तम पुंज जासु वचन रवि कर निकर।। मानस; पृ. ३ मीरा ने सतगुरु की प्रतिष्ठा करते हुए बतलाया है कि सतगुरु के मिलने से ही मन का संशय दूर होता है। सतगुरु के अनुसार यह संसार किसी का नहीं हैं, यह तो केवल भ्रम का झूठा पर्दा है, जो लोगों को अपने आकर्षण के जाल में लुब्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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