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देवीदास-विलास (६) पट्टन
कवि के अनुसार जो समुद्रतट पर बसा हो और जहाँ रत्नों की अत्यधिक उत्पत्ति होती हो उसे पट्टन कहते हैं। बृहत्कल्प के अनुसार नदियों और समुद्रों के किनारे स्थित बन्दरगाहों को जहाँ से नावों और जहाजों द्वारा व्यापार होता था, पत्तन या जलपत्तन कहते थे। आदिपुराण और मानसार के अनुसार भी पत्तन एक प्रकार का विशाल वाणिज्य-बन्दरगाह है, जो किसी सागर या नदी के किनारे स्थित रहता है तथा जहाँ पर मुख्य रूप से वणिक्जन निवास करते थे। बृहत्कथाकोश में पत्तन को रत्नसम्भूति- रत्न प्राप्ति का स्थान बताया गया है। कवि देवीदास ने पट्टन की संख्या अडतालीस हजार बतलाई है, जो चक्रवर्ती के अधिकार में रहते थे। (७) द्रोणमुख
जो नगर सागर के तट पर स्थित हो और जहाँ जाने के लिए जल और स्थल दोनों मार्ग हों, उसे द्रोणमुख कहते हैं। बृहत्कल्प में भी इसकी यही परिभाषा दी गई है। शिल्परत्न में द्रोणमुख को बन्दरगाह माना गया है। द्रोणमुख को व्यावसायिक केन्द्र के रूप में भी महत्व दिया गया है, जो चार सौ ग्रामों के मध्य रहता था और उन ग्रामों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था। कवि देवीदास ने द्रोणमुख की जानकारी देते हुए बतलाया है कि चक्रवर्ती के अधीन एक लाख द्रोणमुख रहते हैं। (८) संवाहन
कवि ने “संवाह" शब्द को ही संवाहन के रूप में लिया है। उन्होंने बतलाया है कि चक्रवर्ती के १४ हजार संवाहन थे, जिसमें २८ हजार दुर्ग बने हुए थे, जहाँ पर शत्रुओं का प्रवेश असम्भव था। आदिपुराण में उस प्रधान नगर को संवाह कहा गया है, जिसमें मस्तक पर्यन्त ऊँचे-ऊँचे धान्य के ढेर लगे हों१२ । बृहत्कथाकोश में “वाहनं" संवाह के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और इसे अद्रिरुढ–पर्वत पर बसा हुआ एक ग्राम कहा गया है।३।
१. चक्रवर्ती. ३/४/४; २. बृहत्. २, १०९० पृ. ३४२; ३. आदि. १६/१७२; ४. मानसार नवम अध्याय; ५. बृहत्कथा. ९४/१६; ६. चक्रवर्ती. ३/४/४; ७. वही. ८. बृहत्., २,१०९०, पृ. ३४२; ९. शिल्परत्न अध्याय ५/२१२; १०. आदि.१६/१७५; ११. चक्रवर्ती. ३/४/५; १२. आदि. १६/१७३; १३. बृहत्कथा., ९४/१७.
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