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प्रस्तावना
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प्रयुक्त मटव' की परिभाषा आदिपुराण के मटम्ब से मेल खाती है। चक्रवर्ती-विभूति वर्णन में कवि ने मटंव की संख्या ४ हजार बतलाई है, जो चक्रवर्ती के अधिकार में रहते थे। (४) खेट
नदी और पर्वत से धिरे हुए नगर को खेट कहा गया है। ऐसे १६ हजार खेट' चक्रवर्ती के अधिकार में रहते थे। आदिपुराण की परिभाषा भी उपर्युक्त ही है। समरांगणसूत्र के अनुसार खेट ग्राम और नगर के बीच होता है। यह नगर से छोटा और ग्राम से बड़ा होता है। ब्रह्माण्डपुराण में कहा गया है कि नगर से एक योजन की दूरी पर खेट का निवेश अभीष्ट है। बृहत्कल्प के अनुसार जिस बस्ती के चारों ओर धूल (मिट्टी) का परकोटा हो अथवा जो चारों ओर से गर्द-गुबार से भरा हो, उसे खेट कहा गया है। इन वर्णनों से प्रतीत होता है कि खेट वस्तुतः “खेड़ा' शब्द का रूप है। इसके चारों ओर भी छोटे-छोटे ग्राम होते हैं। इसे एक छोटा नगर (या कस्वा) भी कह सकते हैं, जो किसी सरिता के तट पर समतल भूमि पर स्थित होता है। आदिपुराण के अनुसार खेट की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं
१. नदी या पर्वत की तलहटी में उसकी अवस्थिति। २. खेट का ग्राम से कुछ बड़ा होने के कारण नगर-रूप में उसका विकास। ३. नदी-पर्वत से संरुद्ध होने से औद्योगिक-विकास के साधनों की प्रचुरता।
४. कृषि-कार्य की प्रमुखता। (५) कर्वट (अथवा खर्वट)
कवि ने कर्वट को पर्वत से आच्छादित बतलाया है अर्थात् जो चारों ओर से पर्वतों से घिरा हुआ हो, उसे कर्वट कहते हैं। कवि के अनुसार इस प्रकार के कर्वटों की संख्या २४ हजार है। जो चक्रवर्ती के अधिकार में रहते हैं। आदिपुराण में कर्वट को खर्वट कहा गया है। उसमें भी खर्वट को पर्वत प्रदेश से वेष्टित कहा गया है। उसके अनुसार खर्वट अनेक गाँवों के व्यापार का केन्द्र रहता था। कौटिल्य ने दो सौ ग्रामों के मध्य खर्वट की अवस्थिति मानी है। सामरिक दृष्टि से इस कर्वट का विशेष महत्व होता था। १. चक्रवर्ती.. ३/४/२; २. चक्रवर्ती. ३/४/३; ३. आदि. १६/१७१; ४. ब्रह्माण्ड., अध्याय १०, पृ. १०४; ५. बृहद्. २,१०८९ , पृ. ३४२; ६. चक्रवर्ती. ३/४/३; ७. आदि. १६/१७५; ८. कौटिल्य. १७/१/३
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