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देवीदास - विलास
८. भौगोलिक सन्दर्भ
(१) देश
कवि देवीदास ने चक्रवर्त्ती - विभूति वर्णन में प्राच्यकालीन भारतीय भूगोल के अच्छे सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने देश का वर्णन करते हुए बतलाया है, कि चक्रवर्त्ती के अधिकार में ३२००० (हजार) देश आते हैं, जो धन, धान्य, स्वर्ण आदि से समृद्ध रहते हैं । कवि के इस "देश" शब्द से प्रतीत होता है कि उन्होंने एक सीमित प्रदेश अथवा नगर के लिए ही "देश" शब्द का प्रयोग किया है। आदिपुराण में नगर की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जिसमें परिखा, गोपुर, अटारी, कोट और प्राकार निर्मित हों तथा सुन्दर-सुन्दर भवन बने हुए हों, वह नगर है । मानसार में भी आदिपुराण के समान ही नगर की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जहाँ पर क्रय-विक्रय आदि व्यवहार सम्पन्न होते हों, अनेक जातियों और श्रेणियों के कर्मकार बसते हों और जहाँ सभी धर्मों के धर्मायतन स्थित हों, उसे नगर कहते हैं ।
(२) ग्राम
कवि ने ग्राम का वर्णन करते हुए बतलाया है कि ग्राम उन्हें कहा जाता है, जो चारों ओर विपुल बाड़ से घेरे हुए हों। चक्रवर्त्ती के ऐसे ग्रामों की संख्या एक करोड़ होती है। आदिपुराण में भी बाड़ से घिरे हुए ग्राम का वर्णन किया गया है । "बृहत्कल्प" में ग्राम की परिभाषा देते हुए कहा है कि जहाँ के निवासियों को १८ प्रकार के कर देने पड़ते हैं, उन्हें ग्राम कहते हैं ।
(३) मटंव - (मटम्ब )
आदिपुराण में मटम्ब उस बड़े नगर को कहा गया है, जो ५०० ग्रामों के मध्य में व्यापार आदि का केन्द्र हो । मटम्ब व्यापार - प्रधान बड़े नगर को कहा जाता है। इसमें एक बड़े नगर की सभी विशेषताएँ विद्यमान रहती हैं। आचारांगसूत्र में मटम्ब की परिभाषा देते हुए बतलाया गया है कि जिस गाँव के ढाई कोस या एक योजन तक चारों ओर कोई गाँव न हो, उसे मटम्ब कहते हैं'। कवि देवीदास द्वारा
१. चक्रवर्ती., ३/४/१; २. आदि. १६ / १६९ - १७०; ३. मानसार, अध्याय १०; ४. चक्रवर्त्ती., ३/४/१; ५. आदि. १६/१६६; ६. बृहत्, २, १०८८, पृ. ३४२; आदि. १६/१७२; ८. आचारांग सूत्र., १/८, ६/३.
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