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प्रस्तावना
१२
(२) प्रश्नोत्तरी शैली - भारतीय-साहित्य परम्परा में प्रश्नोत्तर की यह शैली अत्यन्त प्राचीन है। यह विधा चमत्कार के साथ-साथ प्रसाद युक्त भी है। कवि ने सैद्धान्तिक-तत्वों का निरूपण इस शैली के द्वारा सरलतम रूप में कर दिया है, जो पाठक या श्रोता के हृदय में भली-भाँति पैठ जाता है । “पदपंगति' जैसी रचनाएँ इस दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। (३) निषेध-शैली
जहाँ कवि ने कुविचारों, कषायों एवं मिथ्यात्व का त्याग करने की सलाह दी है, वहाँ उक्त शैली का निर्वाह हुआ है। यथा- मान-मान कही जिया तू मानमान कही। (४) प्रबोधन-शैली
निषेध-शैली के समान ही यह शैली है। अन्तर केवल इतना ही है कि जहाँ निषेध-शैली में त्याग पर बल दिया जाता है, वहाँ इसमें त्याग और ग्रहण दोनों ही पर विशेष जोर दिया जाता है। इसमें प्रबोधक के हृदय की उदात्त-भावना का विशेष दर्शन होता है। यथा
मेरी कही मानुं आपनौ प्रताप आप। तेरी एक समै की कमाई कौ न टोटौ है।।। (५) पद-शैली
कवि ने “पदपंगति' एवं “राग-रागिनी'" रचनाओं में पद-शैली को अपनाया है। उनके पद विभिन्न राग-रागनियों पर आधारित हैं, जिनमें कल्पना, अनुभूति, भावुकता एवं संगीतात्मकता का अद्भुत समन्वय है। ये सभी पद गेय है।
इस प्रकार कवि ने भाव-रस के अनुकूल विभिन्न-शैलियों को ग्रहण किया है। सभी शैलियों के मूल में भावाभिव्यंजना की विविधता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
तात्पर्य यह है कि कविवर देवीदास बुन्देली-हिन्दी के ऐसे महाकवि हैं, जिन्होंने अध्यात्म एवं भक्ति-परक साहित्य के माध्यम से बुन्देली-हिन्दी में विविध रचनाओं के द्वारा “माँ भारती" की अमूल्य सेवा की है। इनकी रचनाएँ समकालीन इतिहास, संस्कृति, साहित्यिक काव्य-शैली एवं भाषा के अनेक रहस्यपूर्ण तथ्यों को प्रकाशित करने में सक्षम है।
१. पद्. ४./ख/२४; २. वही. ३. जोग. २/११/१३, ४. पद. ४(ख) सम्पूर्ण ५. राग..४ (क) सम्पूर्ण।
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