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देवीदास-विलास कवि ने भाषा की कोमलता के द्वारा प्रभावोत्पादन की शक्ति को द्विगणित कर दिया है। भाषा की संगीतात्मकता यत्र-तत्र अपनी मधुरिमा को बिखेर रही है तथा ताल, लय और नाद का सुन्दर समन्वय भावों को मूर्त रूप प्रदान करने में सक्षम है। वाक्यों का गठन अत्यन्त कुशलता के साथ हुआ है, जो भावाभिव्यंजना में पूर्ण रूप से सहायक है। (ब) शैली
भाषा और शैली दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। भाषा जहाँ विचारों एवं भावों को अभिव्यक्ति के प्रकार से सम्बन्ध रखती है। कवि ने अपनी रचनाओं में प्रतिपाद्य विषय के अनुरूप ही विविध प्रकार के काव्य-रूपों एवं शैलियों को प्रयुक्त किया है।
कवि देवीदास ने विचारों को ओजस्वी एवं प्रभविष्णु बनाने के लिए कहीं आदिकालीन चारण-भाट कवियों की भाँति छप्पय-कवित्त' शैली को अपनाया है तो कहीं अध्यात्म-रस की मंदाकिनी प्रवाहित करने के लिए अपभ्रंशकालीन दोहा चौपाई छन्द का प्रयोग किया और कहीं-कहीं अपनी बात को चामत्कारिक उक्तिपूर्ण ढंग से कहने के लिए सवैया-छन्द का आश्रय लिया है और सवैया के विविध रूपों को भी सँवारा है। इन सारी पद्धतियों को देखकर कवि की कुशल काव्यप्रतिभा एवं बहुज्ञता का साक्षात् परिचय मिलता है।
इन काव्य-पद्धतियों के साथ ही उन्होंने विषय-वस्तु का प्रतिपादन जिस रूप में किया है, उससे अनायास ही विविध शैलियाँ भी स्पष्ट हो जाती हैं, जो निम्न प्रकार हैं(१) उपदेश शैली ___ कवि की अनेक रचनाएँ उपदेशात्मक-शैली पर आधृत हैं। कहीं कवि सद्गुरु के माध्यम से सांसारिक प्राणियों को उद्बोधन देता है, तो कहीं उसने स्वयं भी उनके कल्याण के लिए इस शैली को अपनाया है। १. दे. पंच, जोग., बुद्धि. प्रकरण २. दे. शीलांग.; चक्रवर्ती., उपदेश., विवेक. प्रकरण ३. दे. बुद्धि., सम्पूर्ण रचना ४. दे. बुद्धि. २/१६/७,११,१५,१७,१९, पद. ४(ख) ९/१२ ५. दे. पद. ४. ख/ २४/५.
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