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प्रस्तावना
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(झ) सूक्तियाँ ____सूक्ति का अर्थ हैं सुन्दर उक्ति। सूक्तियों का प्रयोग अभिधा शक्ति के अन्तर्गत किया जाता है। सहृदय कवि अपने विषय-प्रतिपादन में इस प्रकार की उक्तियों का प्रयोग करके पाठक को उद्बोधन तथा मार्ग-दर्शन देने का प्रयास करता है। आलोच्य कृति में भी कवि ने अनेक सूक्तियों का प्रयोग किया है। उनमें धर्म, पाप-पुण्य, सज्जन-दुर्जन, शील, संसार, क्रोध, मान, माया, सुमति-कुमति, काम आदि सम्बन्धी सूक्तियाँ प्रमुख हैं। उनमें से कुछ सूक्तियाँ उदाहरणार्थ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं
१. ज्यौं निसि ससि बिनु हूँ न है जी नारि पुरिष बिनु तेम (धर्म. ११) २. प्रीतम सुत सब जानिये जी नदी नाव संजोग रे भाई। (धर्म. १६) ३. मुक्ताहल बिनु पानि ताहि गुनवंत न गोहत। (बुद्धि. २९) ४. कल्पवृक्ष जिमि काट के आंक लगावत द्वार। (धर्म. ९) ५. परमलता बिनु पहुप हुव। (बुद्धि. २९) ६. जैसे पावक छांडि के ईंधन दहे न कोय। (द्वादश. १२) ७. अमृत रस त्यागि मैं जी पीवत विष दुखदाई। (धर्म. ८) . "८. दया मूल ध्रुव धर्म है। (बुद्धि. २८) । ९. तैसे ग्रह संपति बिना जी धर्म बिना नर देह। (धर्म. १३) १०. धर्म सर्व सुख खानि। (बुद्धि. २८) ११. बिजुली सम देख्यौ प्रकट जीवन तन धन हेत। (द्वादश. ३) १२. ज्यों गजराज प्रवीन हीन दंतनि सु न सोहत। (बुद्धि. २९) १३. शीतल होत हुदो जिम चंदन। (जिनवन्दना. ४) १४. ज्ञान को आराधे सोइ पुरुष महान है। (बुद्धि. २४) १५. जैसे अंध न जानै भान (परमा. ९)
१६. भाग्य बिना रे नर मुगध (बुद्धि. ४४) . . इस प्रकार कवि ने बुन्देली बोली को काव्य में प्रतिष्ठित कर अपनी समकालीन बोलियों की विशेषताओं को भी ग्रहण कर लिया है। उनकी भाषा सरल, सहज, सुबोध और स्पष्ट है। उसमें हृदगत भावों को उबुद्ध करने की अद्भुत शक्ति है।
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