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देवीदास-विलास अक्षर को मिला-मिलाकर नौ प्रश्नों के उत्तर बनते हैं। और दसवें प्रश्न का उत्तर पूरे अन्तिम चरण से बनता हैं। जैसे
१. प्रश्न- संसार में नष्ट होने योग्य वस्तु क्या हैं; जिसका त्याग आवश्यक हैं? उत्तर- भोग। २. प्रश्न- संसार में अस्थिर क्या है? उत्तर- जग। जग स्वयं अस्थिर हैं। ३. प्रश्न— पुराणों के अनुसार वह शैय्या कौन सी थी, जिसे रौंदा गया था? उत्तर- नागशैय्या। ४. प्रश्न- वह कौन सा व्रत हैं, जिसको धारण करने वाला सत्पुरुष कहलाता है? उत्तर- दिग्वत। ५. प्रश्न– नेमिनाथ ने शिवा माता के समक्ष किस मार्ग को ग्रहण किया था? उत्तर- तपस्या का मार्ग। ६. प्रश्न- अपना भव सुधारने के लिए कौन सा ध्यान किया जाय? उत्तरनग अर्थात् केवलज्ञान। ७. प्रश्न- शरीर के साथ क्या लगा रहता है? उत्तररोग। ८. प्रश्न - संसार के कष्टों को देखकर जिनेन्द्र ने क्या कहा था? उत्तरघिग अर्थात् धिक्कार। ९. प्रश्न- चार घातिया कर्मों को जीत लेने वाले की कौन सेवा करता हैं? उत्तर- खग अर्थात् स्वर्गलोक के देवता। १०. प्रश्न- श्रीनेमिनाथ भगवान ने रागादि का हनन किस प्रकार किया? उत्तर- भोजनादि मन रोधि खग।
उक्त ग्रन्थ में अनेक पद्य ऐसे हैं, जिनकी रचना कूट-पदों के अन्तर्गत हुई हैं। उन सभी का विश्लेषण कर पाना स्थानाभाव के कारण यहाँ सम्भव नहीं। उदहरणार्थ यहाँ दो पद्यों का भाव दर्शाया जा रहा हैं। प्रथम पद्य में कवि ने निर्ग्रन्थ गुरु की तपश्चर्या का वर्णन किया है। निर्ग्रन्थ गुरु ग्रीष्म ऋतु में चार महिने तक लगातार वन में रहकर तपस्या के भार को सहन करते हुए आत्म-भाव में लीन रहते हैं।
- दूसरे पद्य में सात प्रकृतियों की चर्चा करते हुए बतलाया गया है कि तीन प्रकृतियाँ (मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और मिश्र मिथ्यात्व) ही सम्यक्त्व के परिणाम का हनन करने वाली हैं। जब शुद्ध भावों के द्वारा आत्मा की अनुभूति जागृत होती है, तब उक्त तीन प्रकृतियों का नाश तो होता ही हैं, साथ ही अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय रूप इन चार प्रकृतियों का भी नाश हो जाता है। यथा
मास रहें वन चार अपीत तपी अरचान बहैं रसमा। । माछर भाव तजे सब हैं स सहैं वस जे तव भार छमा।। मार ह. जित तेह नमौं सु सुमौंन हते तजि नेह रमा। मानत जे तप आनि धरे त तरे धनि आप तजे तनमा।। बुद्धि. २/१६/९ तीनिगई अरु तीनिकेथोक की चार कसाई भली विधिदौंची। जोग. २/११/२४
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