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________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 68 सद्गुरु का मिलना : एक सौभाग्य श्री मोफतराज मुणोत आज व्यक्ति को सम्यक् मार्गदर्शक गुरु का मिलना अत्यन्त कठिन है। चहुंओर गुरुओं का व्यवसाय चल रहा है जो भक्तों को उनकी भौतिक मनोकामनाओं की पूर्ति का लालच देकर उन्हें ठगते हैं। उन्हें जीवन की सही दिशा नहीं मिलती। जीवन के सच्चे मार्गदर्शक गुरु सौभाग्य से ही मिलते हैं, जो जीवन में सद्गुणों का सिंचन करते हैं। अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के संरक्षक मण्डल के संयोजक श्री मुणोत साहब ने अपने आलेख में गुरुओं की वर्तमान स्थिति से परिचित कराने के साथ अपने सद्गुरु आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज से मिले लाभों से भी अवगत कराया है। -सम्पादक आज का युग भौतिकवाद का युग है और उसका आधार धन-सम्पदा का परिग्रह है। इसलिए कई श्रद्धालु-भक्तों का इसी ढंग का सोच रहता है कि जो गुरु हमारी मनोकामना की पूर्ति कर सकते हैं, उन्हीं की हम आराधना करेंगे। अधिकतर गुरु भी. इसी ढर्रे पर चलने वाले हैं। वे भक्तों को उनकी अभिलाषा पूर्ति हेतु मन्त्र, तन्त्र, जाप आदि का उपाय बताते रहते हैं। भक्तों को भी प्रायः वे ही गुरु प्रिय लगते हैं जो उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति का ध्यान रखते हैं। व्यक्ति की यह मनोवृत्ति कभी उसे देवी-देवताओं के पास भी ले जाती है। भारत में हजारों मन्दिर हैं और हजारों देवी-देवता हैं। इनमें अपनी इच्छाओं या मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु ही अधिकतर भक्तों का आवागमन होता है। वैष्णो देवी का मन्दिर हो या तिरुपति बालाजी का, साईं बाबा का मन्दिर हो या नाकोड़ा-भैरव का, जहाँ भी मन्दिरों में अधिक भीड़ होती है, वहाँ कोई न कोई मांग लेकर ही भक्तों का आवागमन होता है। उनकी भक्ति भगवान या देवी-देवताओं के प्रति नगण्य एवं अपनी स्वार्थ-पूर्ति के प्रति अधिक झुकी होती है । जहाँ भी वह सुनता है कि उसकी इच्छा की पूर्ति अमुक देवीदेवता के यहाँ जाने से हो सकती है तो वह वहाँ पहुँच जाता है। मन्दिरों में जाने का धार्मिकता या आध्यात्मिकता के साथ कोई निश्चित सम्बन्ध नहीं होता। धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति घर बैठकर भी अथवा अपने ग्राम-नगर में या धर्मस्थान में जाकर भी धर्म-आराधना या भगवद्-भक्ति कर सकता है। किन्तु जो अभावों से ग्रस्त है, समस्याओं से पीड़ित है, इच्छाओं से सन्तप्त है तथा जिसे अपने श्रम, पुरुषार्थ और भाग्य पर भरोसा नहीं है, वह इधर-उधर कभी तीर्थयात्रा के नाम पर, कभी भक्ति के नाम पर अपनी लौकिक समस्याओं के भौतिक समाधान हेतु देवीदेवताओं और मन्दिरों की ओर मुख किये रहता है। तीर्थ-स्थलों और मन्दिरों में तो भीड़ देखी ही जाती है, किन्तु कई गुरु ऐसे भी है जिनके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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