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________________ 69 || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी व्यवसाय चल रहे हैं, जो भक्तों की इच्छाओं और समस्याओं को भांपते हैं तथा उनकी पूर्ति का लालच देकर स्वयं धन-संग्रह में लगे रहते हैं। कई गुरु आज अरबपति हैं। वे लुभावना प्रवचन देते हैं, मधुरवाणी का प्रयोग करते हैं, भक्तों की नब्ज को पकड़ते हैं एवं तदनुसार उनको मनोकामना पूर्ति का विश्वास दिलाकर स्वयं भी अपनी मनोकामना पूर्ण करते रहते हैं। मुझे ऐसे महान् सद्गुरु मिले जो उपर्युक्त बुराइयों से जीवनभर अस्पृष्ट रहे। उन्होंने कभी भौतिक मनोकामना की पूर्ति का लालच नहीं दिया। जो गुरु किसी व्यक्ति में विद्यमान दोषों को दूर कर उसे सन्मार्ग पर लगाते हैं तथा आध्यात्मिकता को जागृत करने में तत्पर रहते हैं वे ही सद्गुरु हैं। मैं भाग्यशाली हँ कि मुझे आचार्य हस्तीमल जी महाराज जैसे गुरु मिले, जिन्होंने मुझे अच्छा जीवन जीने का मार्गदर्शन किया तथा आध्यात्मिकता की प्रेरणा की। मैंने कितनी ही बार गुरुदेव का सान्निध्य लाभ लिया, किन्तु मेरे व्यवसाय के सम्बन्ध में गुरुदेव ने कभी बात नहीं की और न मैंने की। उनके रोम-रोम में संयम, तप और अहिंसामय धर्म व्याप्त था। ___ गुरुदेव के रोम-रोम में संतपना था । उठने में, बैठने में, हाथ धोने में सभी क्रियाओं में संयम और विवेक की उत्कृष्टता थी। मैं सन् 1982 तक उनके मात्र दर्शन करने जाता था। सन् 1986 के पीपाड़ चातुर्मास से गुरुदेव के प्रति मेरा झुकाव बढ़ता गया। उनकी पूरी कृपा रही तथा अन्तरंग प्रेम मिला । मेरे जीवन को सही दिशा मिली। उनके सान्निध्य से मुझे जो लाभ हुए, उन्हें संक्षेप में इस प्रकार कह सकता हूँ:1. अच्छा जीवन कैसे जीऊँ? इसके सूत्र प्राप्त हुए। 2. जीवन में सच्चाई के प्रति आस्था बढ़ी। 3. संघ-सेवा एवं स्वधर्मि-वात्सल्य भाव का विकास हुआ। 4. सिगरेट की बुराई छूटी तथा जीवन व्यसन-रहित हो गया। 5. धर्म का सही स्वरूप समझने का अवसर मिला। 6. समर्पण एवं त्याग की भावना का विकास हुआ। 7. संग का प्रेम मिला, अनेक साधनाशील श्रावकों से सम्पर्क हुआ। 8. तप-त्याग में वास्तविक रुचि जागृत हुई। __ मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे सद्गुरु का सान्निध्य मिलने से अपने आपको समझने का सुयोग मिला तथा आत्मविकारों को जानने एवं उन्हें जीतने का सामर्थ्य मिला। ऐसे सद्गुरु मिल जाना, आज के समय में बहुत बड़ी बात है। मैं असीम श्रद्धा के केन्द्र गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ कि उन्होंने मेरे जीवन को सुन्दर बनाने हेतु आत्मीय मार्गदर्शन किया। उन्हीं के शिष्य आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. के प्रति भी मेरी उतनी ही श्रद्धा है, क्योंकि वे भी मेरे जीवन को आध्यात्मिक साधना में आगे बढ़ाने की निरन्तर प्रेरणा करते रहते हैं। - 'मुणोत विला', 63-के, वेस्ट फील्ड कम्पाउण्ड लेन, भूलाभाई देसाई रोड़, मुम्बई-400026 (महा.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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