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________________ 66 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || भववाद्धिं तितीर्षन्ति सदगुरुभ्यो विनापि ये। जिजीविषन्ति ते मूढा नन्वायुःकर्मवर्जिताः ।। (सिद्धान्तसार, 9.30) अर्थः- जो लोग सच्चे गुरुओं के बिना भी संसार सागर को पार करने की इच्छा करते हैं, वे मूढ़ वास्तव में आयुकर्म के अभाव में जीवन की इच्छा करते हैं। गुरु-भक्ति के बिना सारे अनुष्ठानों की व्यर्थता रयणसार ग्रन्थ की इस गाथा में अवलोकनीय गुरुभत्तिविहीणाणं सिस्साणं सव्वसंगविरदाणं । ऊसरखेत्ते वविदं सुबीयसमं जाण सव्वाणुट्ठाणं ।। अर्थः- हे जीव! सर्व परिग्रहों से विरत, किन्तु गुरु-भक्ति-रहित शिष्यों के समस्त अनुष्ठान बंजर धरती में बोये गये उत्तम बीज की भाँति व्यर्थ जानो! समर्पित शिष्य की भावना गुरु-गीता के इन पद्यों में दृष्टिगोचर होती है ने गुरोरधिकं तत्वं न गुरोरधिकं तपः । न गुरोरधिकं ज्ञानं तस्मै श्री गुरवे नमः ।। ध्यानमूलं गुरोमूतिः पूजामूलं गुरोः पदम्। मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।। अर्थः- तत्त्व गुरु से बड़ा नहीं है, तप गुरु से बड़ा नहीं है और ज्ञान गुरु से बड़ा नहीं है, अर्थात् गुरु तत्त्व, तप और ज्ञान से बढ़कर हैं। उन श्रीगुरु के लिये नमस्कार हो । गुरु की छवि ध्यान का आधार है, गुरु-चरण पूजा का मूल है, गुरु-वचन मन्त्र का मूल है, तथा गुरु की कृपा मोक्ष का मूल है। योगी गोरक्षनाथ विरचित 'सिद्धसिद्धान्तपद्धति' के पञ्चम अध्याय का यह श्लोक देखें किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटिशतेन च। दुर्लभा चित्तविश्रान्तिविना गुरुकृपां पराम्।। अर्थः- इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ है? तथा सैकड़ों-करोड़ों शास्त्रों से क्या प्रयोजन है? गुरु की परम-कृपा के बिना चित्त की विश्रान्ति दुर्लभ है। श्री कृष्ण से उपमन्यु कहते हैं गुरोरालोकमात्रेण स्पर्शनाद्भाषणादपि । सद्यः संज्ञा भवेज्जन्तोः पाशोपक्षयकारिणी।।। अर्थः- गुरु के दर्शन मात्र से, स्पर्श से और संभाषण से भी प्राणी के बन्धन का क्षय करने वाली संज्ञा अर्थात् चेतना तत्काल आविर्भूत होती है। ‘गुरु गीता' में 'गुरु' शब्द को महामन्त्र माना है Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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