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________________ 354 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || वत्सलता, आत्मीयता सेवा-भावना को अपनायेंगे। दम्भ का प्रतिकार करके, मान पर प्रहार करके सच्चे मन से सेवा का आचार-विचार अपनायेंगे। गुरुदेव की जय! आचार्य श्री की जय! जय! जय! दृश्य - दो पार्श्व में संगीत का स्वर धीरे-धीरे उभरता एवं तीव्र होता है, सुमधुर स्वर लहरी के साथ सुनाई देता हैगुरुदेव हुए गुणी विद्वान, गुरुदेव बारम्बार प्रणाम । पढ़कर विद्याज्ञान बढ़ाया, विनयशीलता गुण अपनाया। विद्या सागर सा श्रम करके, सबको दिया साधना ज्ञान॥ गुरुदेव हुए गुणी विद्वान ।। 1 ।। गौतम सी पायी ज्ञान पिपासा, श्रमण सी रही सदा जिज्ञासा। धैर्य दृढ़ता और उदारता से, गुरु शिखर बन किया उत्थान ।। गुरुदेव हुए गुणी विद्वान ।। 2 ।। (धीरे-धीरे स्वर मंद होता है एवं थम जाता है) युवक-एक- मुझे गुरुदेव ने शील आचरण की शिक्षा दी। शील रतन मोटो रतन, सब रतनों की खान । तीन लोक की सम्पदा, रहीशील में आन।। युवक-एक- शील के कारण माता को कुल की रक्षा करने वाली कहा गया है। युवक-एक शील हमारे धर्म की आधार शिला है। शील संस्कारों का सुदृढ़ किला है। शील बुद्धि बढ़ाता, करता शक्ति-संचार शीलव्रतधारी की महिमा अपरम्पार। साध्वी-एक- हम शीलव्रत की शिक्षा को अपनाएँ। तपत्याग का आचरण करते चले जाएँ। मन पुष्पोद्यान समान प्रसन्न होगा। संत-संगत से आत्मोत्थान का आगमन होगा। साध्वी-दो- शीलव्रत आचरण से दूर होगी देश समाज की अनैतिकता। दुष्प्रवृतियों का अन्त होगा।सन्तों की वाणी से समाज सतत, दिशाबोध पाएगा; व्यसनों के कीटाणुओं से मुक्त जगत कहलाएगा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003844
Book TitleJinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain, Others
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2011
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size8 MB
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