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जिनवाणी
| 10 जनवरी 2011 || वत्सलता, आत्मीयता सेवा-भावना को अपनायेंगे। दम्भ का प्रतिकार करके, मान पर प्रहार करके सच्चे मन से सेवा का आचार-विचार अपनायेंगे। गुरुदेव की जय! आचार्य श्री की जय! जय! जय!
दृश्य - दो पार्श्व में संगीत का स्वर धीरे-धीरे उभरता एवं तीव्र होता है, सुमधुर स्वर लहरी के साथ सुनाई देता हैगुरुदेव हुए गुणी विद्वान, गुरुदेव बारम्बार प्रणाम । पढ़कर विद्याज्ञान बढ़ाया, विनयशीलता गुण अपनाया। विद्या सागर सा श्रम करके, सबको दिया साधना ज्ञान॥
गुरुदेव हुए गुणी विद्वान ।। 1 ।। गौतम सी पायी ज्ञान पिपासा, श्रमण सी रही सदा जिज्ञासा। धैर्य दृढ़ता और उदारता से, गुरु शिखर बन किया उत्थान ।।
गुरुदेव हुए गुणी विद्वान ।। 2 ।। (धीरे-धीरे स्वर मंद होता है एवं थम जाता है) युवक-एक- मुझे गुरुदेव ने शील आचरण की शिक्षा दी।
शील रतन मोटो रतन, सब रतनों की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रहीशील में आन।। युवक-एक- शील के कारण माता को कुल की रक्षा करने वाली कहा गया है। युवक-एक
शील हमारे धर्म की आधार शिला है। शील संस्कारों का सुदृढ़ किला है। शील बुद्धि बढ़ाता, करता शक्ति-संचार
शीलव्रतधारी की महिमा अपरम्पार। साध्वी-एक- हम शीलव्रत की शिक्षा को अपनाएँ।
तपत्याग का आचरण करते चले जाएँ। मन पुष्पोद्यान समान प्रसन्न होगा।
संत-संगत से आत्मोत्थान का आगमन होगा। साध्वी-दो- शीलव्रत आचरण से दूर होगी
देश समाज की अनैतिकता। दुष्प्रवृतियों का अन्त होगा।सन्तों की वाणी से समाज सतत, दिशाबोध पाएगा; व्यसनों के कीटाणुओं से मुक्त जगत कहलाएगा।
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