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|| 10 जनवरी 2011 | जिनवाणी
355 (युवक एक एवं युवती एक-मंच से प्रस्थान करते हैं तथा मंच पर युवक-दो एवं युवती
दो का आगमन होता है।) युवक-दो- गुरुदेव ने साधना का पथ बतलाया। साधना का पथ सर्वोत्तम है। यह सरल भी है और दुर्गम भी।
इस पथ पर चलकर साधक तहलटी से शिखर तक की उन्नति कर सकता है। गुरु शिखर पर
गूंजती घंटा-ध्वनि की तरह गुरुदेव की वाणी भी गुंजायमान है। गुरुदेव प्रेरक हैं और निर्माता हैं। युवती-दो- गुरुदेव की वचन वाणी साधना का उत्कृष्ट सोपान है। सौहार्द-भाव का संधान है। अहं विगलन
का विज्ञान है। आत्मशोधन की प्रक्रिया में परिष्कार है। गुरुदेव का आभार है। युवक-दो- साधना पथ के कारण सात्त्विक जनों का सम्मान है। साधना पथ तप में प्रधान है। युवती-दो- गुरुदेव! धर्मवीर, दयावीर, दानवीर हैं। साध्वी-एक- साधना पथ तो जिनशासन का विधान है। साध्वी-दो- इसमें सम्यक्त्व की सुवास है। इसमें मुक्ति की प्यास है। धर्म की राह का अहसास है। साध्वी-एक- साधना के पथ से जाग्रत होता आत्म-विश्वास है। साधना के कारण अंधकार से होता प्रकाश
है।
साध्वी-दो- साधना का पथ जीवन में परिवर्तन लाता।
असत्य से सत्य के मार्ग पर ले जाता॥ मृत्यु से अमरत्व का बोध कराता।
अशान्ति से आनन्द लोक में पहुँचाता॥ युवक-युवती- साधक सेवा धर्म बड़ा गम्भीर,
पार कोई बिरला ही पावेगा। गुरुदेव आपकी वचनामृत वाणी से,
साधक गुरु शिखर सा बन जायेगा। साध्वी-एक- गुरुदेव-आप हस्ती हैं
सदा समाज ऋणी रहेगा समाज को आपने गति दी, शुद्ध मन-वचन-कर्म ज्ञान से
सदा समाज की प्रगति की साध्वी-दो- कल्याण रूप हो मंगल आप,
संत रूपके धारी थे। ज्ञानवन्त हुए गुरु शिखर से, इस युग के अवतारी थे॥
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